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Friday, April 29, 2011

ए दोस्त तेरे साथ होने से


ए दोस्त तेरा होना जीवन में एक अदभुत
अहसास के होने के जैसा ही है

तेरे साथ होने से
हर गम पर ठहाके लगाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
दर्द में भी नाचने गाने का मन करता हैं

तेरे साथ होने से
जीवन बड़ा प्यारा लगता है

तेरे साथ होने से
होने से सुन्दर ये नजारा लगता है

तेरे साथ होने से
बचपन की हर यादे ताजा करने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से आम और अमरुद चुरा कर खाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से उस भूतो वाली बावडी पर जाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से उन सब भूतो को धमकाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से हर शरारत दोहराने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से पिताजी से अपनी मांगे रो कर मनवाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर से उस लड़की के घर के शीशे तोड़ के आने का मन करता है

तेरे साथ होने से
उसके पिता से डाट सुनने को फिर से उसके घर जाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर हवा में उड़ जाने का मन करता है

तेरे साथ होने से
फिर बच्चा बन जाने का मन करता है
फिर से वो बचपन जी जाने का मन करता है

ऐ दोस्त तेरे साथ होने से
मन को एक अद्भुत संबल मिल जाता है
और दोस्ती का अदभुत अहसास सदा ही पूर्णता लाता है
ऐ दोस्त तेरे साथ होने से.....


समर्पित है मेरे उन दो दोस्तों को जिनके होने से मेरे जीवन में ना कोई डर होता है ना ही कोई चिंता उनमे से एक है माया गड़े AKA मुस्कान दूसरा है प्रफुल्ल नामदेव

Thursday, April 28, 2011

दया द्रष्टि और श्रधा भक्ति भावना

वैधानिक चेतावनी :--> कृपया संजीदा हो कर ना पढ़ें, लिखते हुए मै बिलकुल भी संजीदा नहीं था और अगर आपने संजीदा हो कर पढ्ने के बाद सोचा की मुझे थप्पड़ मारें तो आप पर लगने वाली धारा ३०७(हत्या करने की कोशिश) के जिम्मेदार आप ही होंगी :)  

किसी से हमने कहा कैसे हैं 
वो बोले आपकी दया-दृष्टि है

हम बोले नहीं भाई
हम तो एक पत्नी व्रत धारी है
दया दृष्टि तुम्हारी होंगी
हमारी तो मात्र पत्नी प्यारी है

वो साहब बोले तो क्या हुआ
आप एक पत्नी व्रत धर्म पालो
तथा दो प्रेमिका और बढ़ा लो

हम बोले हम तो एक से ही त्रस्त है
आप दो और टिका रहे हो

हमारी एक घरवाली क्या कम है
जो दया और दृष्टि को भी
हमारी ही बना रहे हो

वो बोले कोई बात नहीं जो आप
दया दृष्टि में अपना दिल नहीं लगाते
श्रद्धा भक्ति भावना भी है राहों में
क्यों नहीं आप उनमे से
किसी एक को अपनाते

हम बोले माफ़ कीजिये जो गलती की
और आपका हाल पूछ बैठे


वो साहब हमसे बोले
ये आप क्या कह रहे हैं
हम बोले ना चाहते हुए भी
आपका अत्याचार सह रहे हैं

वो बोले आप तो बड़े ही
नीरस इंसान नजर आते हैं
हम बोले यूँ तो हम
दया, द्रष्टि, श्रधा, भक्ति, भावना
सब को एक साथ घुमाते हैं
पर क्या है की अब
हम शादी कर चुके हैं
इसलिए ना चाहते हुए
भी शराफत दिखाते हैं

वो साहब फिर बोले गुरु
आप तो बड़े ही ग्यानी हो
हम बोले क्या खूब हो जिंदगी
गर बीवी शराब और प्रेमिका
शराब में मिलाने वाला पानी हो

वो साहब बोले गुरु
जरा इसका मतलब समझाइये
हम बोले जाइये पहले जा कर
एक बोतल शराब ले आइये

वो साहब बोले हमने तो सुना था
के आप पीते ना थे
हम बोले नासमझ है वो सब
जो ऐसा कहते हैं आपसे
सच तो ये है की
बिना पिए हम कभी जीते ना थे

वो साहब फिर बोले
पी कर क्या आप नशे में घर जायेंगे
हम बोले गुरु थोड़ी पियेंगे
उसके बाद ही तो होश में आयेंगे. 

Wednesday, April 27, 2011

परछाईयां तो हमेशा ही साथ निभाती है

पिछले  कई दिनों से
मुझे मेरी परछाई से
एक अजीब डर लगने लगा था
इस लिए मैंने उजाले में
निकलना ही छोड़ दिया.
पिछले कई दिनों से
सिर्फ अँधेरे में ही बाहर
जाता था,
जहा मेरी परछाई भी
मेरा पीछा ना कर सके
लेकिन कुछ दिनों से
वही डर फिर से महसूस
होने लगा था,
लगता था कोई
हर वक्त अँधेरे में
मेरा पीछा करता है,
एक रोज मैंने हिम्मत कर के
पूँछ ही लिया,
भाई कौन हो तुम और क्यों
अँधेरे में मेरा पीछा करते हो
जवाब मिला
मै तुम्हारी परछाई हूँ
मैंने कहा पर अँधेरे में तो
परछाईयों साथ नहीं आया करती
जवाब मिला
परछाईयों तो हमेशा ही साथ निभाती है
बस वो काली होती है
इस लिए अँधेरे में कभी नजर नहीं आती है

Tuesday, April 26, 2011

बहना तेरा मेरा वो बचपन

तेरा मेरा वो बचपन लगता है
जैसे कल की ही तो बात थी

जब तुने जन्म लिया था
और मैंने पिता जी से
तुझे लगभग छीन लिया था
और मेरे बस्ते में पिछले रक्षाबंधन
से सहेज कर रखी हुई राखी
मैंने जिद कर के तेरे नन्हे हाथो से
मेरी कलाई पर बंधवाई थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मै तेरे लिए
घोडा बन जाता था
और पूरे घर में तुझे
पीठ पर बैठा कर घुमाता था
राखी पर तुझे नई फ्रोक
दिलाने को गुल्लक
में महीनो पहले से रूपये बचाता था

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब हम मिल कर
शरारत किया करते थे
और किसी एक के पकडे जाने पर
दुसरे का नाम कभी
ना लिया करते थे

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब शरारतो से तंग
आ कर पिता जी के आदेश पर
मेरा खाना बंद हो जाता था
और मेरे भूखे होने पर
रोना तुझे आता था

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मुझे भूखे रहने की
सजा मिलने पर तू
खुद खाना नहीं खाती थी
और अपने हिस्से का खाना
ला कर अपने हाथो
से मुझे खिलाती थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब हम एक दुसरे से
हर छोटी बात पर लड़ा करते थे
मै तेरी छोटी खींचा करता था
और तू मुझे पीठ पर
मार कर भाग जाया करती थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मेरे लिखे उन प्रेमपत्रो
को तू छुप कर पढ़ आया करती थी
और फिर सबके सामने होने पर
उन पत्रों के संदर्भ से मुझे चिढाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरे प्रेम पत्र मोहल्ले
की उस लड़की को देते हुए
तू उसे भाभी कह कर चिढाती थी
और पत्र पहुँचाने के बदले
तुम हम दोनों से
ढेरो चोकलेट पाती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरे हर इमतिहान में
तू रात भर मुझे जगाती थी
और अपने हाथो से चाय बना बना कर
रात भर मुझे पिलाती थी
और मेरे अच्छे नम्बर लाने पर
तू खुद की तारीफे करवाती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरी तबियत बिगड जाने पर
तू माँ बन जाया करती थी
और अपने हाथो से
जबरन दवा खिलाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो बात है

जब तू बेटी की तरह मुझ पर
अपना हर हक दिखाया करती थी
और तेरी हर तकलीफ
सबसे पहले मुझे सुनाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरा हर राज तुझे  पता था
और एक सच्चे दोस्त की तरह
वो तेरे मन की गहराइयों
में ही दबा पड़ा था

अब लगता है जैसे कल की ही तो वो बात है

जब मेरे घर की ये बुलबुल
किसी और के घर में चाह्चाहयेगी
मेरे आंगन की ये खुशबु
किसी और के घर को महकायेगी
डोली में बैठ कर
तू जल्द ही तेरे घर चली जायेगी

तुझसे जो छूटेंगे सब रिश्ते
मेरी भी तो माँ, बेटी , दोस्त और बहन
मुझसे दूर चली जायेगी

भूल ना जाना तू अपने भैया को
तेरी याद हमेशा मुझे आयेगी

तेरा मुझसे खफा होना है कुछ ऐसा ही

तेरा मुझसे खफा होना है कुछ ऐसा ही
जैसे जिस्म से जान का जुदा हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे सांसे तो चलती रहे
लेकिन दिल की धडकनों का रुक जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे मंजिल के सामने आ कर
मंजिल और रास्ते दोनों का खो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे मौसमें बहार में भी
दरख्तों पर से पत्तियों का गिर जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे होली पर भी
रंगों में भीगने से महरूम रह जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे बयाबान में
पानी की आखिरी मश्क का गुम हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे आफताब के होते भी
हर जर्रे से रौशनी का निशाँ तमाम हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे माहताब से भी
गर्म रौशनी का कर जिस्म को जलाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे
मजमे के हुजूम में भी तनहा रह जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे पैदाइश की खुशियों पर
मातम का कहर टूट जाना

ख्वाहिशे कुंदन है बस इतनी ही 
या तो तुझे मना लेना
या कब्र ओढ़ कर खुद ही
कब्र में जिन्दा दफन हो जाना

Monday, April 25, 2011

लोकपाल बिल और नेता का दिल


कई नेता लोकपाल बिल
का विरोध कर रहे थे
हमने उनसे पूंछा आप क्यों विरोध कर रहे हैं तो वो 
उनका तर्क था

जनता तक क्या हम पहले ही कम बिल पहुंचाते हैं
जो अन्ना एक और बिल जनता पर लादे जाते हैं

हम बोले ये बिल तो जनता को फायदा ही पहुँचायेगा
नेता जी बोले पहले ये बताइए क्या ये बिल संसद में पास हो पायेगा

हम बोले हां इसकी तो काफी कम ही उम्मीद है
क्योंकि जो ये बिल पास हो गया तो आपका दिल फेल हो जायेगा

नेता जी फिर आत्मविश्वाश से बोले जो
ये बिल पास हो भी गया तो हमारा क्या बिगड जायेगा

हम बोले क्या बिल के पास होने से
जनता के पास अधिक अधिकार नहीं आ जायेगा
और आपके किये जाने वाले भ्रस्टाचार पर अंकुश नहीं लग जायेगा

नेता जी फिर बोले क्या आप भूल गए
इस बिल का मसौदा भी कुछ नेता ही मिल कर बनायेंगे
हम बोले पर इस समिति में कुछ जनता के प्रतिनिधि भी तो होंगे
क्या वो उस सब के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएंगे

नेता जी बोले क्या जनता के प्रतिनिधि
जनता के भोलेपन से अलग होंगे

जब हमने  ६४ साल
भोली जनता को मूर्ख बनाया
तो भला अब क्यों हम रियायत दिखायेंगे

फिर वो बोले इस बिल को
हम खरगोश के बिल की तरह बनायेंगे
जीसके कारण कभी भी हम भ्रष्टाचारी
इमानदारी के साँप की पकड में नहीं आएंगे

हम बोले आप आपका मुगालता पालिए
हम हमारा मुगालता पालेंगे
जो हम सफल हुए तो
भ्रष्टाचारीयों पर कई सोंटे बरसाएंगे

और जो आप हुए सफल तो
हम हार नहीं मांनंगे और उसी सोंटे पर
इंकलाबी झंडा लगा कर
फिर से दिल्ली कूंच कर जायेंगे

और फिर भूख हड़ताल करेंगे
और फिर सरकार को हमारे सामने झुकायेंगे
लेकिन ये तय है
की अब जो आगे बढ़ चुके हैं कदम
तो उन्हें पीछे नहीं हटाएंगे,
या तो जियेंगे शान से
या इन्कलाब के इस तूफ़ान में
अपनी ताकत देते हुए मिट जायेंगे
पर अब हम एक अच्छा भारत बनायेंगे
पर अब हम एक अच्छा भारत बनायेंगे

Saturday, April 23, 2011

गुजरे हुए पल की यादे और पिता का अह्सास


ए वक्त तू भी थम जा
कुछ देर के लिए ही सही
तुझे तो याद होगा
मेरा गुजरा हुआ हर कल
आ बैठ मेरे साथ
और बाते कर मुझ से
मेरे गुजरे हुए कल की कुछ पल


तुझे तो याद होगा
मेरे जन्म पर पिता की
आँखों में आंसुओं का आ जाना
और बधाईयाँ सुन कर
उनका खुश हो जाना

तुझे तो याद होगा
मेरा वो पहला रोना
और उस रोने को सुन
कर सबका खुश होना

तुझे तो याद होगा
वो मेरा पहला कदम बढ़ाना
और उसे देख कर
पिता का मुझे बाहों में समाना

तुझे तो याद होगा
मेरा पिता की ऊँगली पकड कर
पहली बात स्कूल जाना
और उसे देख कर उनकी
आँखों से आंसूओं का छलक जाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरा वक्त बे वक्त बीमार हो जाना
और मेरी बीमारी में
पिता की भी नींदों का खो जाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरी महंगे खिलौने और कपड़ो की
मांगो को रो कर मनवाना
और उन मांगो को पूरा करने
के लिए पिता का ज्यादा कम करना
और देर से घर आना

तुझे तो याद होगा
हर रोज नई शैतानिया कर के
मेरा चुपके से घर में आना
और सुनने को दादी से
परियों की कहानी
पिता से उनको मनवाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरा पिकनिक पर जाना
और देर होने पर
पिता का व्याकुल हो जाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरा इम्तिहान में
अच्छे नंबर ले कर आना
और खुश हो कर पिता कर पूरे
मोहल्ले में मिठाई को बंटवाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरा कोलेज में जाना
और कॉलेज जाने की लिए
पिता का मुझे नहीं कमीज दिलाना

तुझे तो याद होगा
किसी लड़की का
पहली बार मेरे जीवन में आना
और मेरे चेहरे के रंग को देख कर
पिता का सब समझ जाना

तुझे तो याद होगा
उस रिश्ते के टूटने पर मेरा
उदास हो जाना
और पिता का मुझे
बड़े प्यार से समझाना

तुझे तो याद होगा
वो मुझे नौकरी मिलने पर
पिता का खुश हो जाना
और मेरी नौकरी के पहले दिन
पर मुझे नई घडी दिलवाना

तुझे तो याद होगा
वो मेरी शादी के दिन का आना
और पिता का अपने
हाथो से मुझे दूल्हा बनाना

तुझे तो याद होगा
पत्नी का माँ से खिटपिटा करने 
पर मेरा पिता के सामने शर्मिंदा हो जाना
और बिना कुछ कहे ही
मेरी मनोव्यथा को पिता का समझ जाना


तुझे तो याद होगा
मेरा प्रसव पीड़ा सहती पत्नी को
अस्पताल ले कर जाना
और फिर मेरा भी
पिता हो जाना

ए वक्त तू भी थम जा
कुछ देर के लिए ही सही
तुझे तो याद होगा
मेरा गुजरा हुआ हर कल
आ बैठ मेरे साथ
और बाते कर मुझ से
मेरे गुजरे हुए कल की कुछ पल



आम तौर पर जब किसी को चोट लगती है तकलीफ होती है तो वो कहते हैं माँ पर मै उन चंद लोगो में से हूँ जो कहता है बाबु (मेरे पापा को मै यही कहता हूँ ) उन्ही को समर्पित है ये कविता

मोहब्बत तो आज भी करता हूँ

मोहब्बत तो आज भी करता हूँ
मै तुम्हे उतनी ही लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब
मै मेरी मोहब्बत बतलाता नहीं हूँ

इन्तेजार करता हूँ मै आज भी
हर रोज उस सडक पर तुम्हारा लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है छुपा होता हूँ
इसलिए तुम्हे नजर आता नहीं हूँ

खरीदता हूँ लाल गुलाबो का गुलदस्ता
आज भी हर रोज लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की वो गुलदस्ता
तुम्हे दे पाता नहीं हूँ

जाता हूँ आज भी हर शाम काफ़ीहाउस में
खुशनुमा वक्त बिताने को लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की पहले की तरह
अब तुम्हे बुलाता नहीं हूँ

देता हूँ आज भी केपेचिनो और स्ट्राबेरी शेक
का आर्डर हर रोज लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की पहले की तरह
तुम्हारे स्ट्राबेरी शेक पर मेरा हक दिखाता नहीं हूँ

जाता अभी भी हूँ लॉन्ग ड्राइव पर
हर हफ्ते लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की पहले की तरह
तुम्हारी स्कूटी पर बैठ कर पीछे से तुम्हे गुदगुदाता नहीं हूँ


आरजू आज भी हूँ तुम्हारे नर्म हाथो को पकड़
कर गुलाबी गाली को चूम लेना लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब मै
ऐसा करने का अधिकार पाता नहीं हूँ

चाहता आज भी हूँ तुम्हारी जुल्फों की
छाँव में थक कर सो जाना लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब वह तक पहुँचने
का कोई रास्ता ढूंढ पाता नहीं हूँ

तडपता आज भी हूँ तुम्हे
बाहों में भर लेने को लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब मै मेरी बाहें
फैला पाता नहीं हूँ

सुलगती है मेरी आँखे आज भी
तुम्हे किसी और के साथ देख कर लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है के अब
मै मेरी जलन से किसी को जलाता नहीं हूँ


शर्मिदा आज भी हूँ मै
मेरी गलतियों से लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब पहले की तरह
माफ़ी मांग पाता नहीं हूँ

ख्वाहिश आज भी है मेरे दिल में
प्यार का इजहार कर देने की लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब
तुमसे नजरे मिला पाता नहीं हूँ

मोहब्बत तो आज भी करता हूँ
मै तुम्हे उतनी ही लेकिन
फर्क सिर्फ इतना है की अब
मै मेरी मोहब्बत बतलाता नहीं हूँ

Wednesday, April 20, 2011

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है

फिर क्यूँ मेरे दूर जाने पर आंसू बहाती हो
और क्यूँ बिना श्रंगार किये बाहर चली जाती हो

क्यों टकटकी लगाये सडक के उस मोड
को हमेशा इस उम्मीद से निहारा करती हो

की वहाँ से आने वाला अगला चेहरा मेरा होगा
जहा तुमने मुझे आखरी बार देखा था

क्यों रोज इस उम्मीद को दिल में रख
कर तुम घर से बाहर निकलती हो
की आज फिर रास्ते में तुम्हारा हाथ मै वैसे
ही पकड लूँगा जैसे तब पकड लिया था

जब बाजार में तुमने फुलकियां खाते हुए
बड़ी ही बेख्याली में
तश्तरी का बचा हुआ तीखा पानी
मेरी कमीज के साथ साथ मेरी आँखों में भी
उड़ेल दिया था

क्यों आज भी तुम मेरे पास से चुराई कमीज
में उस तीखी महक को महसूस करती हो
और क्यों उसे सूंघ कर आज भी शर्मा जाती हो

क्यों आज भी मेरे द्वारा समर्पित किये गीतों को
रेडियो पर सुन कर झूमने लग जाती हो

क्यों मेरी एक खुशी के लिए
अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो जाती हो

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है
तो फिर क्यों हर सुबह मेरी सूख चुकी कब्र को
अपने आंसुवो की नमी दे जाती हो
और क्यों हर रात मेरी कब्र के पास
एक दीपक जलाने चली आती हो

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है
फिर क्यों........

Monday, April 18, 2011

मुझे मजबूर ना कहो मजबूत हूँ मै

मुझे मजबूर ना कहो
मजबूत हूँ मै
भ्रष्टाचार की आंधी में भी
पर्वत के जैसा खड़ा हूँ मै
और भ्रष्टाचार को गठबंधन
की मजबूरी कहने से भी नहीं डरा हूँ मै
विपक्ष ने कई आरोप लगाये मुझ पर
लेकिन फिर भी  पद
पर बना हुआ हूँ मै
मैंने रजा और कलमाडी जैसे
कितने ही बवंडरो को सहा है
फिर भी अपनी जगह पर
अडिग खड़ा हुआ हूँ मै
गठबंधन की इस सरकार को
मैंने मेरे मजबूती से बांध रखा है
तभी रजा के जेल जाने पर भी
मध्यावधि चुनवा का खतरा नहीं बढ़ा है
महंगाई पर रोक नहीं लगेगी
मैंने बड़ी ही दिलेरी से स्वीकार करा था
फिर भी पत्रकार वार्ता में
पत्रकारों को संबोधित करने के लिए
कभी पीछे नहीं हटा था
नेता नहीं नौकर हूँ मै
सदा नौकरी करता आया हूँ
मजबूती से आदेश का पालन करता हूँ
जो सदा से करता आया हूँ
पहले लेता था आदेश
मै एक कुर्सी से
अब उसी कुर्सी पर बैठ कर
मैडम के आदेश का पालन करता हूँ
उन्होंने मुझे पद दिलाया है 
मै तो बस स्वामिभक्ति दिखाता हूँ
मजबूर नहीं मजबूत हूँ मै
मजबूती से अपना धर्म निभाता हूँ

***************************************
ये मेरे कवि मन की मात्र एक व्यंग्यात्मक रचना है, कृपया इसे कोई भी व्यक्तिगत रूप से ना ले

आप सभी का स्वागत है मेरी कविताओं, नज्मो और शेरों की दुनिया में

यहाँ आने के लिए आप का धन्यवाद 

पिछले  कई सालो से लिखना लगभग छोड़ चूका था, लेकिन पिछले कुछ दिनों से फिर से लिखना शुरू किया है और उम्मीद करता हूँ अबकभी बंद नहीं करूँगा....

लिख कर जो भी दोस्तो को दिखाया तो उन्हें तो काफी पसंद आया है सब इस लिए यहाँ एक ब्लॉग शुरू कर लिया है सभी पर मेरी कविताओं, नज्मो और शेरों के जरिये अत्याचार करने के लिए :).


अगर आप को पसंद आये तो तारीफ ना करें चलेगा लेकिन अगर पसंद नहीं आया कुछ तो कृपया बुराइ करने में कंजूसी ना करें, वो मुझे मेरी रचनाओं को सुधारने में काफी सहयोग देगा.

यहाँ  मै मेरे उपनाम से ही लिखना पसंद करूँगा जो मुझे मिला था मेरी किसी कविता के ही जरिये

भवदीय
कुंदन
 
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