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Friday, October 28, 2011

आज दिवाली की रात, मै रो चुका हूँ

मै नहीं जानता की कोई अपनी डाल से टूट कर कही और जड़े तलाश बनाने की कोशिश कर रहा है की नहीं लेकिन अगर आप जड़ो से टूट कर अलग हुई एक डाल है तो शायद आप इसे समझ सकें

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आज दिवाली की रात है
आज फिर मै रो चुका हूँ
हर एक रिश्ते से और थोडा,
दूर अब मै हो चुका हूँ

अब दीवाली पर कभी भी
पिता का आशीष नहीं ले पाऊँगा
छोटे भाई को अब कभी भी
उपहार और कपड़े नहीं दे पाऊँगा
अब घर के चौक पर
पटाखे और फुलझड़ी जला न पाऊँगा
अब माँ के हाथों की
गुझिया और पपड़ी खा ना पाऊँगा

आज दिवाली की रात है
आज जाने क्या क्या मै खो चुका हूँ

आज दिवाली की रात है
और आज फिर मै रो चुका हूँ


अब दिवाली पर मुझे
कोई नए कपड़े दिलाता भी नहीं
अब मिठाई मुझ को कोई
अपने हाथो से खिलाता भी नहीं
अब पटाखों से जो जला तो
कोई मुझे मल्हम लगाता भी नहीं
आज फिर हाथ जल गया

दर्द में बिलख कर फिर
आज भूखा ही मै सो चुका हूँ

आज दिवाली की रात है
और आज फिर मै रो चुका हूँ

 
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