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Tuesday, July 5, 2011

क्या सच में वो कल आएगा

ये कविता कई हफ्तों से लिखी हुई थी पर पोस्ट नहीं कर रहा था क्यों की बहुत लंबी थी लेकिन आज हिम्मत कर के पोस्ट कर ही दे रहा हूँ

बीती रात को सोने के पहले
खुद से कहा था,
कल मेरे लिए एक नई सुबह आएगी
कल मै भी जल्दी जागूँगा

लेकिन सुबह जब उठा तो देखा..
सडको की आधी अधूरी सफाई
कभी की हो चुकी है और अब
उन पर फिर से गंदगी फैलने लगी थी,
दूध वाला तडके ही दूध बाँट कर
जा चूका था
जो सुबह सुबह आंगन
में पहूंच चुके समाचार
पत्र के साथ लगने वाली
चाय की चुस्कियों के बीच
खत्म होने वाला था,

सुबह सुबह नर्मदा नदी की
शाखा बन जाने वाले नल को देखा
तो पाया वो पूरी तरह से सूखा हुआ था
और पानी की कोई बूँद भी
टपकती दिखाई नहीं देती थी
पर सडको पर बिखरी पानी की
कुछ धाराओं को देख कर
इस बात की
अनुभूति हो जाती है
की मोहल्ले में नर्मदा मैया का
अवतरण हुए काफी समय
गुजर चूका है,

बगल के स्कूल की तरफ कान लगाया
तो पता चला की
तीसरा घंटा बीत चूका है
और कुछ देर में ही
बच्चो के खाने और खेलने
की थोड़ी देर की छुट्टी हो जायेगी

इसका यही मतलब है की
आज मै फिर देर से जागा हूँ
और मेरा कल आज फिर नहीं आया है
और आज फिर मै एक नए कल की उम्मीद
को अपने पास ले कर सोने वाला हूँ
इस सोच के साथ की
कल तो मै जल्दी जागूँगा
कल तो मेरी सुबह जल्दी होगी

लेकिन फिर दिल में ये सवाल आता है
क्या सच में कल एक नई सुबह होगी
क्या सच में कल आज से अलग होगा

क्या सच में वो कल आएगा
जिसके सपने दिखा कर
एक गरीब इंसान अपने
आंसू छुपाते हुए भूखे
बच्चो को कहता है आज
इस आधा पेट सूखी रोटी
को खा कर रह लो
कल मै भरपेट अच्छा खाना लाऊंगा

क्या सच में वो कल आएगा
जिसका वादा मजबूर कर्जदार ने
साहूकार से किया था
ये कहते हुए की
लाला आज का वक्त दे दो
कल मै पूरा पैसा दे कर तुम्हारे
कर्ज और ब्याज के बोझ से
जीवन भर के लिए मुक्त हो जाऊँगा

क्या सच में वो कल आएगा
जब सरकारी दफ्तरों में
अफसर और बाबु पान की दुकानों
या चाय के ठीहो पर नहीं
अपनी कुर्सी पर मिलेंगे
और किसी भी काम के लिए
चाय-पानी के नाम पर रिश्वत
की मांग को बड़ी ही
बेशर्मी से नहीं करेंगे

क्या सच में वो कल आएगा
जब देश के नेता
खुद की जेबे भरने के बजाय
ईमानदार हो जायेंगे
देश के विकास के लिए
खुद को तपाकर
लोह से स्वर्ण बनायेंगे
और ईमानदारी की आँखों में आँखे डालकर
खुद को उसका पर्यायवाची बताएँगे

क्या सच में वो कल आयेंगा 
जब हम एक दुसरे से
धर्म, जाती, क्षेत्र और भाषा के
नाम पर ना लड़ कर
एक देश के वासी हो जायेंगे
और भूख, गरीबी और भ्रष्टाचार
को अपना दुश्मन बनायेंगे
और मिल कर उसे मिटायेंगे

क्या सच में वो कल आएगा
जब सरकारी अस्पतालों की
मशीनों में जंग नहीं लगेगा
और मुफ्त इलाज की आस लिए
सरकारी अस्पताल में बैठा मरीज
जरूरी जांचो के लिए
निजी अस्पताल में पैसे नहीं भरेगा

क्या सच में वो कल आएगा
जब प्रतियोगी परिक्षाओ की दौड
अच्छे अंक ला कर भी
मेधावी छात्र आरक्षण की बैसाखी से
पिछड नहीं पायेगा
और एक ही कक्षा में
दो छात्रों के बीच पांच हजार
छात्रो के स्तर का अंतर नहीं आएगा

क्या सच में वो कल आएगा
जब हम भ्रस्टाचार के विरुद्ध
जाग्रत हो कर
उन्मुक्त अलख लगाएंगे
और इसे देने वाले सारे सहयोगो
को खत्म कर के
अंतर्मन से एक हुकांर लगाएंगे

मात्र ये एक सवाल
क्या सच में वो कल आयेगा
मेरे जवाब की हर खोज पर
एक ऐसा प्रश्नचिन्ह लगाता है
जिसका पूर्ण विराम
आठो दिशा में कही
भी नजर नहीं आता है

क्या सच में कल वो सुबह आयेगी
जब सब के पेट में दाना होगा
और कोई किसी साहूकार के
कर्ज के बोझ तले नहीं दबा होगा
सरकारी दफ्तरों में
बिना रिश्वत दिए काम हो जायेंगे
और हम नेता को भी
ईमानदारी का पर्यायवाची कह पाएंगे
आरक्षण की बैसाखी
ज्ञान को नहीं हरा पायेगी
और अंतर्मन से भ्रष्टाचार
की पूरी फसल मिट जायेगी

क्या सच में वो कल आएगा
जब ऐसा हो जायेगा
जब वो कल आयेगा
तब मै भी जल्दी जाऊँगा
और आकाश में दमकते
नव सूर्य की पवित्र रश्मियों में नहा कर
लोह से कुंदन बन जाऊँगा
 

 
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