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Wednesday, December 21, 2011

ये लोकपाल बिल है ये खरगोश का बिल


लो जी सरकार लोकपाल ले आई है
इसके साथ ही सौ सवाल ले आई है


मै कहता हूँ ये लोकपाल नहीं है
खरगोश का बिल है
इसी कमजोर बिल के आने से
खुश भ्रष्टाचारी का दिल है

इस बिल मे भ्रष्टाचारी के बचने के
कई कई रास्ते हैं |
पर ये रास्ते सरकार ने इस बिल मे
डाले किसके वास्ते हैं ?

लोकपाल का चुनाव
अपने आप मे एक बड़ा चांटा है|
सरकार ने पदों को भी
वोट बैंक के हिसाब से बांटा है |

सीबीआई पर
लोकपाल का कोई अधिकार नहीं है 
स्वत्रंत जांच हो
ऐसी तो ईमान वाली सरकार नहीं है

जनता के विरोध पर
इटली वाली माता धीमे से धमकाती हैं |
हमारा विरोध न करो
स्पष्ट शब्दों मे ये हमें समझाती हैं |


इस कमजोर लोकपाल बिल के आने से
मेरा सवाल इतना सा है,

क्या इस कमजोर लोकपाल से
भ्रष्टाचार थम सकेगा
नेताओं से दब कर भी , 
क्या लोकपाल स्वतंत्र रूप से
अपना काम कर सकेगा

कितना अनशन करेंगे अन्ना भी
लगता अब तो कहना होगा इश्वर दुहाई है, दुहाई है

लो जी सरकार लोकपाल ले आई है
इसके साथ ही सौ सवाल ले आई है

Monday, December 19, 2011

मोहब्बत के गीत लिख कर तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ


मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ|
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हूँ|

भगतसिंह का नाम सुन,
लहू उबलने लगता है|
वतन के वास्ते मर,
मिटने का दिल करता है|

ऐसे हालातों मे बार बार
मै वंदे मातरम ही गाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ|
जब वतन के दर्द को देख कर,
खुद को आज भी जिन्दा पाता हूँ|


शर्मिंदा हूँ के मेरे देश ही,
देश को लूटने वाले गद्दार बैठे हैं |
जीत कर चुनाव एक बार,
बन के ५ सालो के लिए सरदार बैठे हैं |

इन गद्दारों को मिटाने की चाहत,
लिए कई रातों तक जग जाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,

तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ |
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हू |


देश को तरक्की पर ले जाने के खोखले इरादों से,
मक्कार नेताओं के चुनाव मे मिलते झूठे वादों से,
अब मेरे सब्र का बाँध टूटने को है,
हाँथ ना उठाने की कसम टूटने को है,

क्रांति का अलख जगाने को,
देश को उन्न्त बनाने को,

आज एक कदम और बढाता हूँ|
तुम्हे भी मेरे साथ बुलाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ |
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हू |

Tuesday, December 13, 2011

अमर शहीद मुझे माफ करना


अमर शहीद.. शहीदे आजम भगत सिंह और सभी अमर शहीदों से एक माफ़ी की अपील

हे अमर शहीद मुझे माफ करना
मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया
आजादी तो मिल गई अंग्रेजों से
पर अपनों से आजादी नहीं ले पाया

तुमने अपनी जान लुटाई
आजादी का अलख लगा कर
पूरे देश को जगाने को
यहाँ नेता ही,
जनता की आवाजे दबा रहे हैं
अपनी कुर्सियों को बचाने को

इन नेताओं से
मै अब तक आजाद अभिव्यक्ति का
अधिकार नहीं ले पाया

हे अमर शहीद मुझे माफ करना
मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया

एक तुम थे
जो अपनी खुशियों को छोड़
चले आये थे
अपने घर की
हर सम्पति से मुह मोड
चल आये थे

एक आज के नेता हैं
जो देश की सम्पति पर
अपना हक जमाते हैं
कोई उनके भ्रष्टाचार
के विरुद्ध आवाज उठा दे
तो उसे धमकाते हैं

इन भ्रष्ट नेताओं को
मै आज तक कभी भी
जेल की सलाखे नहीं दे पाया


हे अमर शहीद मुझे माफ करना
मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया
आजादी तो मिल गई अंग्रेजों से
पर अपनों से आजादी नहीं ले पाया

Saturday, December 3, 2011

मेरा घर अब पराया हो गया है


जो मेरा घर था, वो ही अब पराया हो गया है
घर में अब अजनबी, अपना ही साया हो गया है

अब घर की दीवारे मुझसे मेरा नाम पूंछती है
दरवाजे की कुंडी मुझसे मेरी पहचान पूंछती है

मेरे बैठने पर अब तो सोफा भी कसमसाता है
घर का पंखा अब मुझे हवा देते हुए भुनुनाता है

मेरे ही घर में मुझ से आने का सबब पूंछते हैं
कोई जवाब ना हो तो घूर के अजब पूंछते हैं

आने पर अब पड़ोसी पूंछता है वापस कब जाओगे
जाता हुए पूंछता है, क्या वापस लौट के आओगे ?

ऐसे जाने क्या क्या है जो मुझे अजनबी बताता है
मुझे मेरे ही घर में पराये होने का अहसास करता है

यादों का जखीरा कभी था वो सब जाया हो गया है

जो मेरा घर था, वो ही अब पराया हो गया है
घर में अब अजनबी, अपना ही साया हो गया है

Wednesday, November 30, 2011

कागजो का वो छोटा सा पुलिंदा



कागजो का वो छोटा सा पुलिंदा
अपने भीतर प्यार को समेटे हुए
एक मधुर मनभावन खुशबू को
अपने आलिंगन में लपेटे हुए

आज फिर
मेरे हाथों मे जब आया
तो फिर
उस चहकते चेहरे ने
उस आँखों के जोडे ने
उस अगाध विश्वाश ने
उस प्यार के अहसास ने
उस वादों की वसीयत ने
उस पाने की नियत ने
उस पल के हर सवाल ने
उस पल मचे बवाल ने
मुझे फिर से
दो आंसूं तब रुलाया

जब कागजों का वो छोटा सा पुलिंदा
आज फिर
मेरे हाथों में जब आया
 
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