मुझे छंद, अलंकारों और
रसो का कोई ज्ञान नहीं है,
कविता के जो भी है रहस्य
उनसे मेरी कोई पहचान नहीं है.
शब्दों को कैसे चुनु मै,
ह्रदय की बात को ह्रदय
तक पहुँचाने को,
मुझे शब्दों के चयन का
कोई भान नहीं है.
मै मेरे ह्रदय की वेदना
अथवा उत्साह को लिखता हूँ,
कागज पर, और वो
बन जाती है कोई कविता,
मुझे इस बात का अभिमान नहीं है.
क्यूँ की जो भी मै लिखता हूँ
वो सब मेरे ह्रदय को
तुम्हारा ही दिया हुआ है
चाहे मै दर्द लिखूं अथवा खुशी
मिलन लिखूं या विरह
वो तुम्हारा ही दिया है
तुम इसे ना समझो
तुम इतनी नादान नहीं हों