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Tuesday, May 24, 2011

मेरे शब्दों का स्त्रोत

मुझे छंद, अलंकारों और
रसो का कोई ज्ञान नहीं है,
कविता के जो भी है रहस्य
उनसे मेरी कोई पहचान नहीं है.

शब्दों को कैसे चुनु मै,
ह्रदय की बात को ह्रदय
तक पहुँचाने को,
मुझे शब्दों के चयन का
कोई भान नहीं है.


मै मेरे ह्रदय की वेदना
अथवा उत्साह को लिखता हूँ,
कागज पर, और वो
बन जाती है कोई कविता,
मुझे इस बात का अभिमान नहीं है.


क्यूँ की जो भी मै लिखता हूँ
वो सब मेरे ह्रदय को
तुम्हारा ही दिया हुआ है
चाहे मै दर्द लिखूं अथवा खुशी
मिलन लिखूं या विरह
वो तुम्हारा ही दिया है
तुम इसे ना समझो
तुम इतनी नादान नहीं हों


5 comments:

vandana gupta said...

वाह्…………बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर रचना ..बिना ज्ञान के भी खूबसूरती से लिख दिया

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण..सुन्दर रचना..

संजय भास्‍कर said...

फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

(कुंदन) said...

संगीता जी मेरे दादा जी कहा करते थे जो भी करना दिल से करना हमेशा अच्छा करोगे

बस दिल के जज्बातों को कागज पर उतार देता हूँ वो कविता बन जाती है मेरी किस्मत है ये

@वंदना जी , कैलाश सर, संजय जी पसंद करने के लिया धन्यवाद

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