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Wednesday, November 28, 2012

फिर से बच्चा होने की चाहत


कभी कभी मन करता है
फिर से मुह फुला कर रूठूं
और रूठ कर बैठ जाऊं
दरवाजे की चौखट पर
जैसे कभी बचपन मे
बैठा करता था
और फिर चौखट पर बैठ
मुह फुला कर
नखरे दिखा कर
कहूं
किसी को मेरी चिंता नहीं है
कोई मुझ से प्यार नहीं करता
और दिल मे ये चाहत हो
के अभी सब मुझे मनाएंगे
मेरे नखरे उठाएंगे
बाबू प्यार से दुल्रायेंगे
कंधे पर बैठा कर घुमायेंगे
टॉफी और खिलौने दिलाएंगे
मेरे झूठे गुस्से पर
अम्मा मुस्काएगी
अपने आंचल में छुपाएगी
और फिर ख़ुशी के मारे
खुद ही रोने लग जायेगी
अपनी चिंता मुझे दिखायेगी
अपना प्यार मुझ पर लुटायेगी
पर अब मुह फुला कर बैठूं भी तो क्या
जानता हूँ
मेरे लिये ना पह्ले
जैसा प्यार है न दुलार है
और अब कोई नहीं कहेगा
मुझे तुम्हारी चिंता है,
मुझे तुम से प्यार है


Friday, April 20, 2012

कहाँ हो तुम ?


मेरे दिल की धड्कन पूँछ रही हैं
कहाँ हो तुम ?
मेरी एकाकी तडपन पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?
मेरे सपनों की नीद पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?
मेरे प्यार की उम्मीद पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?
मेरे गीतों की हर धुन पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?
मेरी गजल की तरन्नुम पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?

मेरा हर साज, मेरी हर आवाज
मेरा जीने का अहसास, मेरी हर साँस
पूँछ रही है
कहाँ हो तुम ?
अब मुझे बता दो तुम
कहाँ हो तुम
अब मुझे गले लगा लो तुम
कहाँ हो तुम .....?
कहाँ हो तुम .....?

Tuesday, April 10, 2012

दर्द में भी जिंदगी होती है

 
कुछ उलझनों के साये में
जिंदगी की दरख्त के तले
नकाबों को चेहरे से ढंके
चेहरों पर भावों को मले
कुछ दर्द, कुछ खुशियाँ
आँखों को थोडा पानी देकर
कुछ लम्हों को जिंदगानी देकर
मुझे ये बात बता रहे हैं
जिंदगी का मतलब
सिर्फ खुशियाँ ही नहीं
दर्द में भी जिंदगी होती है
ये सारे लम्हे मुझे यही सिखा रहे हैं |
ये सारे लम्हे मुझे यही सिखा रहे हैं |

Thursday, March 8, 2012

होली की शुभकामनाएँ आप को

रंगने की धमकी ना दे, क्या तेरे रंगों से मै डर जाऊँगा |
रंगेगी मुझको तेरे हाथों से, मै भी तो रंग ले कर आऊँगा
कनक कंचनी काया तेरी, चमक रही है ऐसे जो चंदा सी
तेरी इस कंचनी काया को मै, मेरे रंग में रंग जाऊँगा |

होली की शुभकामनाएँ आप को

मेरी होली का हर साल तुम

मेरी होली का हर साल तुम

चंदा की चांदनी तुम
सूरज की रौशनी तुम
बरखा की हरियाली तुम
भोर की लाली तुम

होली का रंग लाल तुम

मेरी होली का हर साल तुम

पूर्णिमा का उजियारा तुम
नदिया का किनारा तुम
मेरे काव्य का श्रृंगार तुम 
जीवन में ठंडी बयार तुम

इश्वर का कमाल तुम

मेरी होली का हर साल तुम

रंगो की बरसात तुम
सबसे प्यारी बात तुम
जीवन का अभिसार तुम
मेरा सारा संसार तुम

होली का गुलाल तुम

मेरी होली का हर साल तुम

Sunday, February 5, 2012

शब्दों की खोई गठरी के कुछ शब्दों की पोटली


मेरे शब्दों की खोई गठरी के
कुछ शब्दों की पोटली
बस अभी अभी मैंने पाई है
ये पोटली कुछ खोई है
कुछ सकुचाई है |
जरूर इस गठरी ने
बात कोई खास छुपाई है |

इसमे मिलन है
और बिछुडना भी है
इसमें एक टूंटन है
और कुछ जुडना भी है
इसमें एक सन्नाटा है
और बेआवाज शोर भी है
जाने किस काम में आती
पर एक महीन डोर भी है
इसमें यादे हैं
और कई नज़ारे भी है
कुछ नामो की गूंजे हैं
जो पहाडो पर पुकारे हैं
इसमें साथ है
और मुस्कुराहटें भी है
दबे कदम दिल तक जाते 
उन क़दमों की आहटें भी हैं
इसमें बिछोह की तडप है,
और खो दिया वो अधिकार है

अब समझा हूँ
जो इस पोटली में है उसका नाम प्यार है |
अब समझा हूँ
जो इस पोटली में है उसका नाम प्यार है |


Wednesday, February 1, 2012

कृष्ण सा जीवन

बहुत सहज है अश्रु बरसा देना 
बिन रोये अश्रु पीना बड़ा कठिन है |
बहुत सहज है, कंकर पत्थर पाना
पा लेना कोई नगीना बड़ा कठिन है |
राधा की पीड़ा को जग ने गाया है 
कृष्ण की पीड़ा गाओ तो समझोगे |
बड़ा सहज है राधा हो के जीना 
कृष्ण सा हो के जीना बड़ा कठिन है|

Wednesday, January 25, 2012

मेरी सुबह की साथी


मैंने कई दिनों से कोई कविता नहीं लिखी थी लेकिन दो दिन पहले एक कविता तब बन गई जब मेरी प्यारी सी दोस्त से ५ दिन बाद मेरी बात हुई .. कौन है ये मेरी दोस्त आप खुद ही पढ़ लीजिए
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वो दूर खड़ी एकाकी सी पहाड़ी 
आज मुझ से लड़ रही थी |
क्यूँ नहीं मिला इतने दिन उससे
इसकी शिकायत मुझ से कर रही थी |

वो हर सुबह मेरा इन्तेजार करती थी
और उदास हो जाती थी |
वो सुबह धीरे धीर शाम में बदलती थी
और फिर रात में खो जाती थी|

और वो फिर इन्तेजार करती थी
अगली सुबह मेरे आने का |
गुजरे दिन की मेरी बाते सुनने का
और अपनी बाते सुनाने का |

आज जब कोहरा छटां तो मेरी न सुनी
बस वो अपनी ही सुनाती रही |
मुझे याद कर के कितना वो उदास रही
ये मुझे बार बार वो बताती रही |

मैंने कोहरे की चादर वाली मजबूरी बताई
तो वो बोली वो ये सब समझती है |
पर दूसरों की गलती या मेरी मजबूरी के बाद भी
मुझ से लड़ने का हक तो वो रखती है |

मै उसे क्या समझाता वो तो खुद ही
सब समझ चुकी है |
शायद इसलिये क्यूँ की वो पहाड़ी
मेरी सुबह की साथी बन चुकी है |
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Tuesday, January 10, 2012

जाने क्या कड़वाहट है सियासत में

जाने क्या कड़वाहट है सियासत लफ्ज में
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये

जो साथ बैठ कर चूसते थे गन्ने खेतों में
उनमे ही आपस में कड़वे बोल बुलवा देती है ये

कभी जिन्होंने एक दुसरे को अलग न समझा
उन्ही को हिंदू और मुसलमान बना देती है ये

मजहब सिखाता है अमन चैन से रहना
मजहब के नाम पर नफरत सिखा देती है ये

ईद और दीवाली पर जिन्हें कहते हें भाई हम
उन्ही भाइयों से वोटों के लिए लडवा देती है ये

जाने क्या कड़वाहट है सियासत लफ्ज में
एक दोस्त को दोस्त से दुश्मन बना देती है ये



 
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