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Friday, July 1, 2011

गुजरा आधा साल

मेरी ५०वि पोस्ट मेरे कविताओं के ब्लॉग पर
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कल आधा साल गुजर गया
कल बाकी आधा भी गुजर जाएगा
हर साल की शुरुवात में
बदलाव के लिए ली गई कसम
खुद को किये वादे
और सपने
रस्म की तरह अभी भी
कल की अलमारी में
उसी तरह से रखी हुई है
जैसे कल रखी थी

वो वादे जो खुद से किये थे
अब झूठे लगते हैं
जो सपने देखे थे
वो आज भी अधूरे ही हैं

एक वादा खुद से ये भी किया था
इस कल नाम की अलमारी को
इस बार मै बाहर फैंक दूंगा
जिससे कोई भी काम
मै कल पर ना टाल सकूँ
पर उस वादे को ही उस
कल नाम की अलमारी में
बंद कर के रख दिया है
और हर आज में सोचता हूँ
इस वादे को कल
इस कल नाम की अलमारी से
जरूर बाहर निकाल लूँगा
लेकिन पूरे में से आधा साल
इसी आज और कल में गुजर गया
और वो अलमारी आज
भी वैसे ही जगह पर है

साल की शुरुवात में 
ये कसम भी खाई थी
अब मै दर्द को नहीं सहूंगा
कभी किसी से प्यार नहीं करूँगा
क्योंकि दर्द का कारण प्यार ही है
मेरे अंदर मौजूद
प्यार को भी मिटा दूंगा
लेकिन ये कसम भी
सिर्फ तोड़ी ही है मैंने
प्यार भी किया, दर्द भी सहा
इस बात की कोई भी उम्मीद नहीं है
के इस दर्द और प्यार दोनों से ही
अगले आधे साल में भी
दूर हो पाऊँगा

एक सपना भी देखा था
के अब मै हाथो में कीबोर्ड नहीं रखूंगा
अब मै कलम चलाऊँगा
कलम से मै गीत लिखा करूँगा
मंच पर खड़े हो कर
उन गीतों को गुनगुनाया करूँगा
हाथो में कूंची भी होगी
और कागज पर ढेरो रंग
बिखरे होंगे जिन्हें मै मिला कर
एक अर्थ दे दिया करूँगा
पर ये सपना भी सपना ही है
मंच पर मै जा नहीं पाया
कोई गीत कभी गा नहीं पाया
रंगों को चित्रों में नहीं बदल सका
और ये सपना भी पूरा ना कर सका

पर अब आज
आधे साल के पूरा होने पर
ये सोचता हूँ बचे हुए आधे साल में
ये सब पूरा करूँगा
उस कल नाम की अलमारी से
सारे काम निकाल कर
उस अलमारी को
बाहर फैंक दूंगा
दर्द को ना सहूँ इस लिए
कोई दर्द निवारक लूँगा
और अब मै गीत लिखूंगा
मै गाऊँगा,
मै भावनाओं के रंगों को
चित्रों में बदलूँगा
और ये सब मै करूँगा

पर इस कल नाम की अलमारी के
ताले की चाभी नहीं मिल रही है
इसमें कुछ डालने की लिए तो
ऊपर से एक खाना बना है
जिससे सब इसके अंदर चला जाता है
पर इस अलमारी को खोलने के लिये
चाभी की जरूरत है
अब सोचता हूँ
आज मै चाभी ढूंढ लेता हूँ
कल मै इस
कल नाम की अलमारी को
बाहर फैंक दूंगा
 
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