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Sunday, July 31, 2011

देखो सरकार कमजोर लोकपाल ले कर आ गई है


आज एक सरकारी मंत्री से मुलाक़ात हुई
उस मुलाक़ात मे लोकपाल की भी बात हुई

हम बोले मंत्री जी आपने ये कैसे
लचर लोकपाल कानून बनाया है

लगभग हर भ्रष्टाचारी को आपने
इस कानून के दायरे से बहार बताया है

मंत्री जी बोले, आपसे किसने कहा
हमने कोई क़ानून बनाया है

ये तो बस लोकपाल के नाम पर
हमने जनता को मूर्ख बनाया है

हम बोले
इस लचर कानून के बनने से
जनता तो आपसे गुस्सा हों जायेगी

मंत्री जी बोले होने दो गुस्सा,
जनता भला हमारा क्या बिगाड पायेगी
जब तक आयेंगे चुनाव सब भूल जायेगी

चुनाव मे हम फिर से नोट बाटेंगे
हम दारू भी बटवायेंगे
उस दारू और नोट के दम पर
फिर से सरकार बना के सत्ता मे आयेंगे

हम बोले मंत्री जी जनता अब जाग चुकी है

अब जनता के दिल मे

भरष्टाचार के विरुद्ध आग भडक चुकी है
ईमानदार हों सरकार ऐसी मांग भडक चुकी है


बताइये आप चुनाव मे भडकी हुई जनता को
इस बार कैसे समझा पायेंगे
और इस बार आप चुनाव जीत कर
कैसे अपनी सरकार फिर से बनाएंगे

मंत्री जी बोले आप भी आम जनता है
अत: राजनीती के कामो से अनजान है

हम कई वर्षों से है इस राजनैतिक दलदल मे,
इसमें कैसे डूबना है और कैसे निकलना है
हमे हर बात का भली भाँती ज्ञान है

वो बोले आप नहीं समझते पर

हम चुनाव मे इस लचर लोकपाल को भी
अपना ताकतवर हथियार बनाएंगे
जो क़ानून नहीं बना वर्षों मे उसे हमने बनाया
ऐसे कह के इसे हमारी उपलब्धि बताएँगे

हम बोले मंत्री जी
ये कैसे कानून आपने बनाया है
जिसमे सांसद, मंत्री, विधायक और संत्री
सभी को इस क़ानून के बहार बताया है

तो आप ही बताइये भला कौन है
जो इस कानून के दायरे मे आया है

मंत्री जी बोले वो तो हम नहीं जानते

पर ये जानते है ये क़ानून वो है जिसमे
हर दल अपनी सहमती पूरी निष्ठां से दिखायेगा
बिना किसी वाद विवाद के ये सरकारी ड्राफ्ट
संसद मे बिना किसी रोक टोक के पास हों जायेगा

हम विपक्ष के नेता से बोले

नेता जी आप तो मुह खोलिए
इस लचर क़ानून पर विरोध दिखाइए
आप एक मजबूत विपक्ष है
ऐसा हम सब को बतलाइये

विपक्ष के नेता जी बोले देखो जनता

कुर्सी और भ्रष्टाचार से भला किसकी रिश्तेदारी है
आज इनकी तो कल हमारी बारी है

कल हम सरकार मे आयेंगे
तो क्या हम पैसा नहीं खायेंगे
जो बना सख्त लोकपाल कानून
तो क्या हम खुद उसमे नहीं फंस जायेंगे


हम दोनों पक्षों के नेताओं से बोले

क्या आपका दिल देश के लिए
जरा भी नहीं धडकता
क्या देख कर ऐसी दुर्दशा देश की
आपका मन जरा भी नहीं तडपता

सुन कर हमारी बात
नेता जी बड़ी शान से बोले

सख्त लोकपाल कानून ना बनाना
देशहित हेतु हमारी मजबूरी है
देश को चलाने के लिए नेता, अफसर
और सरकारी कर्मचारियों का होना जरूरी है

जो देश से भरष्टाचार मिट जायेगा
तो भला कौन नेता बनेगा,
कौन सरकारी नौकरी मे जायेगा

बिना नेता और सरकारी नौकरों के
देश भला कैसे चल पायेगा

ये सुन कर हमने देखा
हमारी पलको मे अब पानी था
हम समझ चुके थे नेताओं से
सख्त लोकपाल की उम्मीद करना
बस नादानी था

पर हमने भी अब ये ठाना है
देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है

हमने आगे बढाएं है कदम
हम अब पीछे नहीं हटाएंगे
हम देश के युवा ये कसम खाते हैं
हम एक अच्छा भारत बनाएंगे

हम जियेंगे शान से
हमारे सपनों के सच्चे भारत मे

नहीं तो इन्कलाब के इस तूफ़ान मे
अपनी ताकत देते हुए मिट जायेंगे

पर ये तय है हम अब
एक अच्छा भारत बनाएंगे

एक अच्छा भारत बनाएंगे


Wednesday, July 27, 2011

इस छत से दूर होना है

तुम्हे पता है क्या
आधी रात को इस छत से
इस तरह
तुम्हारे हाथो मे हाथ लेकर
चाँद को यहाँ से इस तरह
शायद आज
आखरी बार देख रहा हूँ

चाँद कल भी होगा
छत भी कही नहीं जायेगी
गाहे बगाहे हम दोनों भी
इस छत पर आ जायेंगे
पर आधी रात को
हाथो मे हाथ लेकर
इस छत पर खड़े हों कर
हम चाँद को शायद
फिर कभी नहीं देख पायेंगे

क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे

तुम्हे पता है क्या
मुझसे सिर्फ
ये छत ही नहीं छूटेगी
कई यादे भी यहीं छूट जाएँगी
कई तस्वीरें जो सजी है
जहन की दीवारों मे
वो तस्वीरें भी टूट जाएँगी

अब सर्दियों की दोपहरी मे 
छत पर बिखरी वो धुप
मेरी नहीं होगी

गर्मियों की उन शामों मे 
कोने मे मेरी वो मच्छरदानी
नहीं टंगी होगी

अब बारिश की रातों मे
हम दोनों इस छत पर
शायद कभी भीग नहीं पायेंगे

क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे

वो छत पर ही
फागुन की मस्ती मे
हम दोनों का ही फागुन हों जाना
तुमको रंगने से पहले ही
तुम्हारा मेरे प्रेम रंग मे खो जाना

छत पर कपड़े सुखा कर
उन कपड़ो की ठंडी छाँव मे 
आकर मेरी बाहों मे
सबसे छुप कर चुपचाप
थोड़ी देर के लिए सो जाना

अब इस छत पर हम
ये सब नहीं दोहरा पायेंगे

क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे

Tuesday, July 26, 2011

आज के दिन को महान कैसे बतलाऊँ

सुबह देखा मोबाइल मे शहीद दिवस का मेसेज आया था
उस मेसेज मे आज के दिन को महान बताया था

मै नहीं जानता

आज के दिन को मै महान बताऊँ
या माओं की उजड़ी कोख
बहनों की सूनी कलाई और
सुहागनों की टूटी चूड़ी
को याद कर के मै आंसू बहाऊँ

वीरों,
तुम्हारे बलिदान को मै व्यर्थ नहीं बतलाता
पर देख कर देश की दशा
मै खुद को रोक भी नहीं पाता

वो स्वप्न आज भी अधूरा ही है
जिसके लिए
तुमने अपने प्राणों की आहूति दी थी  
खड़े हों कर करगिल की
ठंडी चोटी पर मौत से आँखे मिला कर
तुमने उसे चुनौती दी थी

वीरों
तुमने तो कारगिल को जीता है
पर नेताओं ने वोटों की खातिर
पूरा कश्मीर हारा है

शर्म आती है मुझे
के पूरी संसद चुप बैठी है
नपुंसको की तरह, सुन कर भी  
काश्मीर के मुख्यमंत्री की बात
जो कहता है
हम भारत का हिस्सा नहीं है
ऐसा कहता बटवारा है

वीरों
तुमने सीमाओं पर अपना लहू बहाया था
ताकि देश की माटी ना खून से रंगने पाए

हर बच्चे की आँखों मे अच्छे कल के सपने हों
हर शख्स बेख़ौफ़ हों कर घर से बाहर जाए

पर आज लोग घर से निकलने मे डरते हैं
क्यूंकि हर मोड पर होते धमाके हैं
और उन धमाकों से जलती लाशो पर
नेता अपनी सियासी रोटियां बनाते हैं

वीरों
पुलिस वालों का क्या कहूँ, कहने को तो
वो भी तुम्हारी तरह हम सब के रक्षक हैं,
पर वो बस भक्षक वाला रूप दिखाते हैं
कमजोर पर चलाते डंडे हैं, और गुंडों को
थाने मे बैठा कर चाय पिलाते हैं

तुम ही बताओ ऐसे हालातों मे मै कैसे
डर के साये मे जीवन ना बिताऊँ
और कैसे तुम्हारी शाहदत  वाले दिन को
मै दिल से महान बताऊँ

जिस दिन गुंडों के दिल मे पुलिस का डर होगा
ईमानदार इंसान थाने जाने से नहीं घबराएगा
जब नेता लाशो पर रोटियां नहीं सेंकेंगे
आतंक के विरुद्ध हर दल एक हों जाएगा

शायद उस दिन मेरा मन
शहीद दिवस को महान दिवस बता पाएगा

और मेरा मन बस आज के दिन को
शहीद दिवस मानने से इंकार कर देता है
क्यूंकि तुम ही हों जिनके बलिदान से
देश का हर वासी रोज आजाद हवा मे साँस लेता है

ये सिर्फ कहता है

देश का हर दिन सिर्फ तुम्हारा है
तुम सदा अमर रहो, यही कहना हमारा है

 
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