जो मेरा घर था, वो ही अब पराया हो गया है
घर में अब अजनबी, अपना ही साया हो गया है
अब घर की दीवारे मुझसे मेरा नाम पूंछती है
दरवाजे की कुंडी मुझसे मेरी पहचान पूंछती है
मेरे बैठने पर अब तो सोफा भी कसमसाता है
घर का पंखा अब मुझे हवा देते हुए भुनुनाता है
मेरे ही घर में मुझ से आने का सबब पूंछते हैं
कोई जवाब ना हो तो घूर के अजब पूंछते हैं
आने पर अब पड़ोसी पूंछता है वापस कब जाओगे
जाता हुए पूंछता है, क्या वापस लौट के आओगे ?
ऐसे जाने क्या क्या है जो मुझे अजनबी बताता है
मुझे मेरे ही घर में पराये होने का अहसास करता है
यादों का जखीरा कभी था वो सब जाया हो गया है
जो मेरा घर था, वो ही अब पराया हो गया है
घर में अब अजनबी, अपना ही साया हो गया है