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Tuesday, May 31, 2011

तू और मै


तेरे मेरे बीच मे
ये तेरा मेरा कैसा है.
मै तो कब से ही
तुझ मे खो कर,
तू हो चूका हूँ
और मै यही समझता था, 
की तू भी मै हों चुकी होगी.

मै समझता था,
हम दोनों हवा मे मिली गंध
और पानी मे मिले रंग
की तरह एक हो चुके हैं,
जिसमे कोई भी अलगाव
होना अब मुमकिन नहीं है.

पर ये कौन सी छलनी है
जिसने हवा को भी छान दिया,क
जीसने पानी मे घुले रंग
को भी पानी से बाँट दिया.

जिसने 
एक तू या एक मै से,
एक तू और एक मै
का निर्माण कर दिया,
और मै से मुझ को
तथा तू से तुझ को
अलग कर दिया.

Monday, May 30, 2011

ये हालात जल्द बदल जायेंगे

गर सीख सके तो सीख
सैर करते एक जोड़ी कदमो से

गुरुर नहीं कोई अगले कदम को
शर्म नहीं पिछली कदम को भी कोई

के वो जानते हैं ये हकीकत
के ये हालात जल्द बदल जायेंगे

Sunday, May 29, 2011

तेरी आँखे


क्या कहूँ तेरी आँखों के बारे मे
जब भी इन्हें देखता हूँ
तो लगता है

इन आँखों मे झील की गहराई है
इन आँखों मोती की सच्चाई है

इन आँखो मे प्रेम का सागर है
इन आखो मे सुधा की गागर हैं


इन आँखों मे एक मधुशाला है
इन आँखों मे प्रेम की एक पाठशाला है
प्रेम को नृत्य से जीवंत कर दे
ऐसी एक रंगशाला है


ये सब है इन आँखों मे
फिर भी जाने क्यों लगता है

इन आँखों मे
एक न मिटने वाली प्यास है
लगता है जैसे इन आँखों को
किसी खास की तलाश है

Saturday, May 28, 2011

लोग कहते हैं हम हँसते नहीं


वो कहते हैं हमारी सादगी को देख कर, के हम कभी हँसते नही
सच तो ये है की हम हंस के, किसी की मोहब्बत मे फंसते नही

हम तो सदा महकने वाली, हंसी की एक पूरी फुलवारी हैं दोस्तो
कोने मे सजा कर रखने वाले, नकली महक के फूलो के गुलदस्ते नही.

पूंछना उनसे हमारे ठहाको के किस्से कभी, जो साथ बैठते हैं हमारे
वो बताएँगे तुम्हे, हम हँसते हैं दिल खोल कर के या हँसते नहीं

हम तो वो हैं, जो हंसा हंसा कर रुला देते हैं पत्थरों को भी
और पत्थर हम से पूंछते हैं, क्या हंसा हंसा कर कभी तुम थकते नहीं

कहें क्या हम फूलों से, पत्थरों से और अनजानों से
ये नेमत है, जो मिली है हमें, मंदिर की घंटी से मस्जिद की अजानो से.

Wednesday, May 25, 2011

आंसुओ के नमक में खुशी है या दर्द


कल से जाने
कितने अहसास
दिल में दबे बैठे हैं,
ना जुबा पर आते हैं
ना ही उंगलियों से
कागज पर उतरते हैं.

इन अहसासों में खुशी है
या ज़माने भर का गम,
वो तो नहीं जानता.
लेकिन इतना जरूर है,
की हर अहसास अपनी
अनुभूति के साथ,
कुछ आंसू भी ले आता है.
और इन आंसूओं के
आने का पता तब चलता है,
जब ये आंसू आँखों से निकाल कर
पहले ही सूख चुके
आंसुओ के द्वारा
बनी हुई पगडण्डी से,
गालो पर लुढ़कते हुए
होठो से टकरा कर
मुह में एक नमकीन
स्वाद छोड़ते हुए
लिखने के लिए सामने रखे
कागज पर टपक जाते हैं
और कुछ शब्दों को भिगो कर
कहते हैं.
अब जागो
और अहसासो की इस स्वप्न सलोनी
दुनिया से वास्तविकता के
कठोर धरातल पर कदम रखो
और पहचानो!
ये जो नमक इन शब्दों
पर गिर गिर के इन्हें मिटा रहा है,
इस नमक में
दुखो का कोई कोलाहल है,
या सुख का कोई कलरव

मै कहता हूँ, हां!
कोशिश करता हूँ पहचानने की
और इस स्वाद को पहले
किसी खुशी में चखा था
या किसी दर्द में
ये याद करने की कोशिश करते हुए
मै फिर से सोचने लग जाता हूँ
और फिर कुछ देर बाद
उसी एक आवाज में
वही शब्द सुनाई देते हैं
और वास्तविकता
के कठोर धरातल पर ले आते हैं

कल से ये वृत्तांत कितनी 
बार दोहराया जा चूका है
वो तो मुझे याद नहीं है लेकिन
हर दोहराव इस अनजान अनुभूति
की चरम सीमा तक
पहुँचाने के लिए अपना योगदान
अवश्य दे देता है

Tuesday, May 24, 2011

मेरे शब्दों का स्त्रोत

मुझे छंद, अलंकारों और
रसो का कोई ज्ञान नहीं है,
कविता के जो भी है रहस्य
उनसे मेरी कोई पहचान नहीं है.

शब्दों को कैसे चुनु मै,
ह्रदय की बात को ह्रदय
तक पहुँचाने को,
मुझे शब्दों के चयन का
कोई भान नहीं है.


मै मेरे ह्रदय की वेदना
अथवा उत्साह को लिखता हूँ,
कागज पर, और वो
बन जाती है कोई कविता,
मुझे इस बात का अभिमान नहीं है.


क्यूँ की जो भी मै लिखता हूँ
वो सब मेरे ह्रदय को
तुम्हारा ही दिया हुआ है
चाहे मै दर्द लिखूं अथवा खुशी
मिलन लिखूं या विरह
वो तुम्हारा ही दिया है
तुम इसे ना समझो
तुम इतनी नादान नहीं हों


 
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