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Tuesday, May 31, 2011

तू और मै


तेरे मेरे बीच मे
ये तेरा मेरा कैसा है.
मै तो कब से ही
तुझ मे खो कर,
तू हो चूका हूँ
और मै यही समझता था, 
की तू भी मै हों चुकी होगी.

मै समझता था,
हम दोनों हवा मे मिली गंध
और पानी मे मिले रंग
की तरह एक हो चुके हैं,
जिसमे कोई भी अलगाव
होना अब मुमकिन नहीं है.

पर ये कौन सी छलनी है
जिसने हवा को भी छान दिया,क
जीसने पानी मे घुले रंग
को भी पानी से बाँट दिया.

जिसने 
एक तू या एक मै से,
एक तू और एक मै
का निर्माण कर दिया,
और मै से मुझ को
तथा तू से तुझ को
अलग कर दिया.

5 comments:

Shikha Kaushik said...

Kundan ji bahut bhavbhari abhivyakti ko shabd diye hain .aabhar

Rajesh Kumari said...

jajbaaton ko bahut achche sootr me piroya hai aapne.bahut bhaavpoorn rachna.

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

संजय भास्‍कर said...

दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

vandana gupta said...

ये मै और तू का सफ़र ही इंसान तय नही कर पाता नही तो हम ना बन जाता……………बेहद उम्दा भावाव्यक्ति

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