तेरे मेरे बीच मे
ये तेरा मेरा कैसा है.
मै तो कब से ही
तुझ मे खो कर,
तू हो चूका हूँ
और मै यही समझता था,
की तू भी मै हों चुकी होगी.
मै समझता था,
हम दोनों हवा मे मिली गंध
और पानी मे मिले रंग
की तरह एक हो चुके हैं,
जिसमे कोई भी अलगाव
होना अब मुमकिन नहीं है.
पर ये कौन सी छलनी है
जिसने हवा को भी छान दिया,क
जीसने पानी मे घुले रंग
को भी पानी से बाँट दिया.
जिसने
एक तू या एक मै से,
एक तू या एक मै से,
एक तू और एक मै
का निर्माण कर दिया,
और मै से मुझ को
तथा तू से तुझ को
अलग कर दिया.
5 comments:
Kundan ji bahut bhavbhari abhivyakti ko shabd diye hain .aabhar
jajbaaton ko bahut achche sootr me piroya hai aapne.bahut bhaavpoorn rachna.
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
ये मै और तू का सफ़र ही इंसान तय नही कर पाता नही तो हम ना बन जाता……………बेहद उम्दा भावाव्यक्ति
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