ना मंजिले कोई राह बनाती हैं,
ना कोई भी याद, रास्ता दिखाती है
उस पुरानी सदरी मे
तो अब धुल की परते जम चुकी हैं
और वो अनुभव की गठरी
तो कभी की खुल चुकी है
जिसमे जमा सारा अनुभव
जा चुकी आंधी की तरह
यहाँ से कही दूर जा चूका है
पीछे कुछ है तो
सिर्फ धुल
जिससे बाल सने हुए हैं
दांतों के बीच की रेत
आँखों से बहता हुआ पानी
और एक सवाल
जिसका जवाब
न मेरे पास है
न तुम्हारे पास
वैसे भी कुछ सवाल
अनुत्तरित ही अच्छे होते हैं