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Wednesday, April 20, 2011

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है

फिर क्यूँ मेरे दूर जाने पर आंसू बहाती हो
और क्यूँ बिना श्रंगार किये बाहर चली जाती हो

क्यों टकटकी लगाये सडक के उस मोड
को हमेशा इस उम्मीद से निहारा करती हो

की वहाँ से आने वाला अगला चेहरा मेरा होगा
जहा तुमने मुझे आखरी बार देखा था

क्यों रोज इस उम्मीद को दिल में रख
कर तुम घर से बाहर निकलती हो
की आज फिर रास्ते में तुम्हारा हाथ मै वैसे
ही पकड लूँगा जैसे तब पकड लिया था

जब बाजार में तुमने फुलकियां खाते हुए
बड़ी ही बेख्याली में
तश्तरी का बचा हुआ तीखा पानी
मेरी कमीज के साथ साथ मेरी आँखों में भी
उड़ेल दिया था

क्यों आज भी तुम मेरे पास से चुराई कमीज
में उस तीखी महक को महसूस करती हो
और क्यों उसे सूंघ कर आज भी शर्मा जाती हो

क्यों आज भी मेरे द्वारा समर्पित किये गीतों को
रेडियो पर सुन कर झूमने लग जाती हो

क्यों मेरी एक खुशी के लिए
अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो जाती हो

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है
तो फिर क्यों हर सुबह मेरी सूख चुकी कब्र को
अपने आंसुवो की नमी दे जाती हो
और क्यों हर रात मेरी कब्र के पास
एक दीपक जलाने चली आती हो

तुम कहती हो तुम्हे मुझसे प्यार नहीं है
फिर क्यों........
 
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