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Wednesday, November 30, 2011

कागजो का वो छोटा सा पुलिंदा



कागजो का वो छोटा सा पुलिंदा
अपने भीतर प्यार को समेटे हुए
एक मधुर मनभावन खुशबू को
अपने आलिंगन में लपेटे हुए

आज फिर
मेरे हाथों मे जब आया
तो फिर
उस चहकते चेहरे ने
उस आँखों के जोडे ने
उस अगाध विश्वाश ने
उस प्यार के अहसास ने
उस वादों की वसीयत ने
उस पाने की नियत ने
उस पल के हर सवाल ने
उस पल मचे बवाल ने
मुझे फिर से
दो आंसूं तब रुलाया

जब कागजों का वो छोटा सा पुलिंदा
आज फिर
मेरे हाथों में जब आया

Monday, November 28, 2011

मै भला कैसे प्यार लिखूं



दिल करता है मै प्यार लिखूं
तेरे मेरे बीच का करार लिखूं

देश में भ्रष्टाचार की खुली छूट देख कर
देश के कर्णधारों की खुली लूट देख कर

जनता नाम के आगे वोट बैंक देख कर
घूंस खोरो की रोज बढती रैंक देख कर

सडको पर मासूम हाथों में भीख देख कर
होटलों में बच्चों को मिलती चीख देख कर

हर रोज रोटी के बढते दाम देख कर
हर रोज नए घोटाले का नाम देख कर

आम इंसान की आवाज को दबाता देख कर
गरीब तमाचा नेता के गाल पर आता देख कर

चुनावों मे प्रत्याशी पर लगे आरोप देख कर
सिस्टम से मिटती जाती होप देख कर

विद्रोह की आवाज मजहब में बटते देख कर
युवाओं की देश बनाने की चाहत घटते देख कर

विदेशियों के लिए देश पर आघात देख कर
देश के हर दिन बिगड़ते हालात देख कर

मेरा दिल धूं धूं कर के जलता है
मेरे लहू का हर कतरा उबलता है

देश के ऐसे नाजुक हालातों में,
जब लिखना है मुझको ये कड़वी सच्चाई
तो कैसे बस तेरे मेरे बीच का करार लिखूं
मै भला कैसे प्यार लिखूं
मै भला कैसे प्यार लिखूं

Monday, November 14, 2011

हौंसले को मत हारना


जंग हार जाना, पर अपने हौंसले को मत हारना
दर्द सहते हुए मर जाना, पर खुद को मत मारना

हौंसले को हार देने से
खुद को मार देने से 
कुछ हांसिल नहीं हो पायेगा
जो कुछ मेरा तुझ मे है
जो कुछ तेरा मुझे में है
वो अंधियारे मे कहीं खो जायेगा

इस अंधियारे मे
कुछ उजियारा फैलाने को
गैरों के गढ़ में
कुछ अपनों को पाने को

दर्द सह कर भी
तुझे मुस्कुराना ही होगा
जख्मी है पैर तो भी
तुझे कदम बढ़ाना ही होगा

इस मुस्कुराने में
इस कदम बढाने में
दर्द भी मिट जायेगा
जख्म भी भर जायेगा

किला अवसादों का
फिर भी बच गया अगर
तो डर ना कर ,
फ़िकर न कर
वो तेरे हौंसले के तीव्र आवेग से ढह जायेगा
और तुझे हर बार सिर्फ यही गीत सुनाएगा

जंग हार जाना, पर अपने हौंसले को मत हारना
दर्द सहते हुए मर जाना, पर खुद को मत मारना


Sunday, November 13, 2011

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

 
हर बार, जब सूने- सन्नाटे में
पत्तियों के बीच से हवा गुजरने पर
रात, सीटियों की आवाज सुनाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब रात को घर आने पर
बाहर का खाना ना खाने की इच्छा और
भूख की तडप, मैगी नूडल खिलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, दिन भर के काम और
ताकत भर की थकन से टूटे बदन को
जब नींद उस बिस्तर पर सुलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब सडक पर चलते हुए
बाहर निकल मोहल्ले में टहलते हुए
कोई माँ किसी को राजा बेटा कह के बुलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब किताब पढते हुए
सो जाता हूँ, मीठे सपनों में खो जाता हूँ
जब किताब सीने से नीचे गिर जाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है


हर बार जब मै खुद से बात करता हूँ
जब तेरे सहे हुए दर्द को समझता हूँ
जब वो सारी बाते मुझे बार बार रुलाती है

माँ, तब तेर्री बहुत याद आती है
 
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