हर बार, जब सूने- सन्नाटे में
पत्तियों के बीच से हवा गुजरने पर
रात, सीटियों की आवाज सुनाती है
माँ, तब तेरी बहुत याद आती है
हर बार, जब रात को घर आने पर
बाहर का खाना ना खाने की इच्छा और
भूख की तडप, मैगी नूडल खिलाती है
माँ, तब तेरी बहुत याद आती है
हर बार, दिन भर के काम और
ताकत भर की थकन से टूटे बदन को
जब नींद उस बिस्तर पर सुलाती है
माँ, तब तेरी बहुत याद आती है
हर बार, जब सडक पर चलते हुए
बाहर निकल मोहल्ले में टहलते हुए
कोई माँ किसी को राजा बेटा कह के बुलाती है
माँ, तब तेरी बहुत याद आती है
हर बार, जब किताब पढते हुए
सो जाता हूँ, मीठे सपनों में खो जाता हूँ
जब किताब सीने से नीचे गिर जाती है
माँ, तब तेरी बहुत याद आती है
हर बार जब मै खुद से बात करता हूँ
जब तेरे सहे हुए दर्द को समझता हूँ
जब वो सारी बाते मुझे बार बार रुलाती है
माँ, तब तेर्री बहुत याद आती है
4 comments:
हाँ कुन्दन ये बाते तभी याद आती है जब हम उनसे गुजरते है मगर तब नही जब वो हमारे साथ होती है और हम उसे दुत्कारते हैं…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
bahut bhaav poorn marmik prastuti.
माँ सारी उम्र ही याद आती है ... बहुत भावपूर्ण रचना
maa har shaam jaab khana khata hu tab teri bahut yaad aati hai ........aur sir aapko ye bata du ki mujhe nahate waqt bhi maa yaad aati hai quki itna bada hone ke baad bhi mujhe thik se nahana nahi aata jab bhi ghar jata hu maa mujhe apne hathon se nahlati hai.........
kuch bhi kaho maa iswar se bhi pyari hai ....
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