Ads 468x60px

Pages

Friday, July 8, 2011

बारिश और तुम

 
बारिश की बूंदे
मेरे तन को भिगोती है
तुम्हारे प्रेम की बूंदे
मेरे मन को भिगोती है

बारिश का आना
सूर्य से मिले
ताप को मिटाता है
तुम्हारा आना
विरह से मिलते
दाह को मिटाता है


बारिश होने से
जैसे चातक की
वर्ष भर की
प्यास बुझ जाती है
वैस ही तुम्हारे प्यार से
मेरी कई जन्मो की
तलाश मिट जाती है

जैसे बारिश की बूंदों के 
साथ से पौधों पर
नई कलियों का अंकुरण होता है
वृक्षों पर नए पत्ते आते हैं
वैसे ही मेरे जीवन मे भी
आशा की नई कोपलें फूटने लगती है

अब मै कैसे ना कहूँ की
बारिश और तुममे कोई अंतर नहीं है
 
Google Analytics Alternative