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Sunday, November 13, 2011

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

 
हर बार, जब सूने- सन्नाटे में
पत्तियों के बीच से हवा गुजरने पर
रात, सीटियों की आवाज सुनाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब रात को घर आने पर
बाहर का खाना ना खाने की इच्छा और
भूख की तडप, मैगी नूडल खिलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, दिन भर के काम और
ताकत भर की थकन से टूटे बदन को
जब नींद उस बिस्तर पर सुलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब सडक पर चलते हुए
बाहर निकल मोहल्ले में टहलते हुए
कोई माँ किसी को राजा बेटा कह के बुलाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है

हर बार, जब किताब पढते हुए
सो जाता हूँ, मीठे सपनों में खो जाता हूँ
जब किताब सीने से नीचे गिर जाती है

माँ, तब तेरी बहुत याद आती है


हर बार जब मै खुद से बात करता हूँ
जब तेरे सहे हुए दर्द को समझता हूँ
जब वो सारी बाते मुझे बार बार रुलाती है

माँ, तब तेर्री बहुत याद आती है
 
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