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Wednesday, January 25, 2012

मेरी सुबह की साथी


मैंने कई दिनों से कोई कविता नहीं लिखी थी लेकिन दो दिन पहले एक कविता तब बन गई जब मेरी प्यारी सी दोस्त से ५ दिन बाद मेरी बात हुई .. कौन है ये मेरी दोस्त आप खुद ही पढ़ लीजिए
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वो दूर खड़ी एकाकी सी पहाड़ी 
आज मुझ से लड़ रही थी |
क्यूँ नहीं मिला इतने दिन उससे
इसकी शिकायत मुझ से कर रही थी |

वो हर सुबह मेरा इन्तेजार करती थी
और उदास हो जाती थी |
वो सुबह धीरे धीर शाम में बदलती थी
और फिर रात में खो जाती थी|

और वो फिर इन्तेजार करती थी
अगली सुबह मेरे आने का |
गुजरे दिन की मेरी बाते सुनने का
और अपनी बाते सुनाने का |

आज जब कोहरा छटां तो मेरी न सुनी
बस वो अपनी ही सुनाती रही |
मुझे याद कर के कितना वो उदास रही
ये मुझे बार बार वो बताती रही |

मैंने कोहरे की चादर वाली मजबूरी बताई
तो वो बोली वो ये सब समझती है |
पर दूसरों की गलती या मेरी मजबूरी के बाद भी
मुझ से लड़ने का हक तो वो रखती है |

मै उसे क्या समझाता वो तो खुद ही
सब समझ चुकी है |
शायद इसलिये क्यूँ की वो पहाड़ी
मेरी सुबह की साथी बन चुकी है |
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