आज आशीष के बेटे को हुए सवा महीने हों चुके थे. यूँ तो वो एक बड़ा जलसा करना चाहता था लेकिन सीमित आमदनी और कर्ज ना मिल पाने की मजबूरी में एक छोटी सी पूजा कर के बच्चे की सूरज पूजा का कार्यक्रम कर रहा था
पूजा हों ही रही थी और जाने कहाँ से कुछ किन्नर अपना नेग मांगने के लिए. आशीष ने अपनी जेब से १५१ रूपये निकाले बच्चे पर न्योछावर कर के उन किन्नरों को श्रद्धा के साथ दिए और बदले में तिरस्कार वाली गाली सुन कर पीछे हट गया
हमें भिखारी समझ रखा है क्या, ५१०० रूपये चाहिये लड़का हुआ है, वो यही सोच रहा था की ५१०० रूपये इन्हें कहाँ से देगा उसके पास तो कुल ३००० रूपये हैं जिसमे पूजा भी करना है पंडित जी को दक्षिणा भी देना है और महीने भर का खर्च भी चलाना है
उसने हाथ जोड़े, पैर पड़े पर किन्नर ना माने, अब तो वो घर का सामान फैंकने लगे थे, बच्चे को माँ के हाथो से छीन लिया था, बददुआएं देने की धमकी दे रहे थे जिसे सुन कर आस पास वाले आशीष को समझाते हुए बोले मान जाओ इनकी दुआ और बददुआ में बहुत ताकत होती है, जैसे तैसे कर के किन्नर २१०० रूपये पर माने, उत्पात मचाना बंद किया और पैसे के बदले दुआएं बेच कर चले गए.
अब पूजा हुई बचे हुए ९०० रूपये में से पंडित जी पहले से तय दक्षिणा के ५०० रूपये ले कर चले गए, कम करने की गुजारिश पर पंडित के पैसे कम करने की चाहत के लिए फटकार मिली और पंडित जी से नर्क जाने का रास्ता तय्यार करने वाली दलील अलग सुनने को मिली.
अब आशीष की जेब में कुल ४०० रूपये बचे थे और रात होते होते बुखार से बच्चे की तबियत बिगड़ने लगी. जब अस्पताल ले कर पहुंचा तो वहाँ कहा गया २००० रूपये जमा करो बच्चे को भरती करना पड़ेगा, सुबह तक पैसे जमा करने की दलील सुनने पर कहा गया तो सुबह ले कर आना.
आशीष बच्चे को ले कर घर वापस आ चूका था, लेकिन सुबह होते होते बच्चे का तपता बदन पूरी तरह से ठंडा हों चूका था और अब उस नन्हे से शरीर में जान नहीं थी, बस शरीर ही बचा था.
सुबह वो बचे हुए ४०० रूपये बच्चे के कफन में खर्च हों रहे थे
सब कह रहे थे देखो किन्नरों की बददुआ का असर है ये, के बच्चा रात भर भी ना बचा.
और आशीष सोच रहा था काश मैंने २१०० रूपये न दे कर किन्नरों से बददुआएं ही ले ली होती तो शायद मेरा बच्चा जिन्दा होता
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ये कहानी मैंने मेरे एक सच्चे अनुभव पर ही लिखी है .... मैंने एक आलेख लिखा था करीब १ साल पहले उसी के आधार पर ये कहानी ४ दिन पहले दिमाग में जन्मी थी
उस लेख का शीर्षक था "किन्नरों की गुंडागर्दी और नपुंसक भारतीय मानसिकता"
कभी उस आलेख को भी पोस्ट करूँगा
उस लेख का शीर्षक था "किन्नरों की गुंडागर्दी और नपुंसक भारतीय मानसिकता"
कभी उस आलेख को भी पोस्ट करूँगा