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Sunday, May 22, 2011

भ्रस्टाचार से खुद ही लड़ना होगा


आज देश मे हर शख्स
इमानदारी की डफली बजा रहा है
देश को भ्रस्टाचार से मुक्त करो
यही एक राग गा रहा है

कोई नेताओं को भ्रष्टाचारी बताता है
कोई सिस्टम को दोषी ठहरता है

पर जाने क्यों कोई भी शख्स
खुद के अंदर है जो भ्रष्टाचारी
उस पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता है

कभी हम गैस की टंकी
कुछ ज्यादा पैसे दे कर ले लेते हैं
कभी अपने अधिकारों का हनन
चुप कर के सह लेते हैं

कभी भगवान के दर्शन भी
कुछ पैसे दे कर जल्दी कर आते हैं

और कभी टैक्स के थोड़े पैसे बचाने को
पूरे पैसे का बिल नहीं बनवाते हैं

और उस पूरे पैसे को
व्यापारी की काली कमाई मे पहुंचाते हैं

हम खुद ईमानदार नहीं है
लेकिन नेताओं से इमानदारी की उम्मीद लगाते हैं

आप खुद ही बताइये क्या सच मे
आप भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना चाहते हैं

जो आपका जवाब हाँ है तो खुद से भी लड़ना होगा
खुद के अंदर है जो भ्रष्टाचारी उसे समाप्त करना होगा

किसी और के घर मे भगत सिंह के आने का
इन्तेजार अब बंद करना होगा

जब तक हम दूसरों के घरों मे
भगत सिंह के होने की दुआएं मनाएंगे
तब तक हम भ्रस्टाचार की अंधी मे
सिर्फ सूखे दरख्तों की तरह टूटते ही जायेंगे

गाँधी, नेहरु, सुभाष, तिलक और भगत सिंह
फिर से अब हमारे लिए लड़ने को नहीं आयेंगे

उनके बनाए रास्तो पर चल कर
खुद ही भ्रष्टाचार से अब हमें लड़ना होगा 

हर कतरे पर फैले भ्रस्टाचार का
प्रतिकार हमें ही करना होगा


मै ये नहीं कहता की
कोई बदलाव एक दिन मे आ जायेगा
६४ सालो की गंदगी को धुलने मे
थोडा वक्त तो लग ही जायेगा

और हम जो आज पहला कदम बढ़ाएंगे
तभी कल एक अच्छा भारत बना पाएंगे
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उम्मीद है आप मेरी राय से इत्तेफाक रखते हैं और इस विषय मे कुछ न कुछ जरूर करेंगे



हम प्रलय से नहीं डरते....

सभी प्रलय प्रलय कर रहे थे तो, इस मजाक को सुन कर थोडा मस्ती के मूड मे था इस लिए ये शब्द निकल कर आ गए, कृपया मस्ती के साथ पढ़े और मस्त हों जाएँ



टीवी पर प्रलय की खबर देख कर,
बीवी बोली सुनो जी प्रलय आने वाली है.
हम बोले आने दो,
हमारा क्या बिगाड़ पाएगी.

वो बोली
आप ऐसे मुगालते मे क्यों है.

हम बोले जो पिछले कई सालो से
कभी शोपिंग और कभी छुट्टी
और कभी फिल्म के नाम पर
जितना तुमने हमारा नुक्सान कराया
प्रलय तो उससे कम ही नुक्सान पहूंचायेगी

ये सुन कर पत्नी गुस्से से बोली
अब हम नुक्सान नही कराएँगे
तथा कई कामो से भी
पीछे हट जायेंगे

वो बोली
अब कल से जब
तुम्हे सुबह कि चाय और
शाम कि पकौडिया नहीं मिलेंगी,
गन्दी कमीजे और
पतलूने जब नहीं धुलेंगी,

जब रुमाल और बटुआ
जगह पर नहीं पाओगे,
और जब दफ्तर बिना
खाने के डब्बे के जाओगे

तब बीवी के गुस्से से आता है महाप्रलय
ये तुम भली भाँती समझ जाओगे

हम बोले भाग्यवान यही तो हमारा भी कहना है

जिसके घर मे खुद महा प्रलय का निवास हों
उसे छोटी मोटी प्रलय कैसे डराएंगी
और उसका क्या नुक्सान कर पायेगी
 
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