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Sunday, June 26, 2011

यादो के आशियाने नहीं मिटते

वो नमकीन बूँदे,
जो पलकों से रुखसार पर
भीगी रुत की दाह से आ जाती है
वो दाह
जाने कब तक

जाने कब तक
यूँ ही जलाती रहेगी
आँखों से मेघ बरसते रहेंगे
कुछ बूंदे कही से ढलकती रहेंगी
वो पुरानी छत रिसती रहेगी
जिसमे से यादो की बूंदे
टिप टिप कर के टपकती रहेंगी

और
जमाने की ठोकरे,
कड़वाहटों का बवंडर
जुदाई की सच्चाई भी
यादो की नीव को
नही हिला पाएगी.

वैसे भी,
वक्त के सैलाब मे
यादो के आशियानें,
कहाँ मिटा करते हैं?

 
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