Monday, August 29, 2011
Monday, August 22, 2011
इटली की माता तुम मे है दम
मैने कभी पैरोडी नहीं लिखी लेकिन ये अपने आप ही बन गई तो मैने चेंप दी है अब आपकी सेवा मे है
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पार्टी पुकारे तुझे पार्टी पुकारे
आ जा रे अब आ जा रे
डरे हुए सब नेता यहाँ हैं
डर को मिटा दे
आ जा रे अब डर को मिटा दे रे
हिंदी का भाषण इंग्लिश मे पढ़ती वो शान से
मंत्री जी तो थर थर काँपे सुन कर उनका नाम रे
रंग है उनका गोरा सा,और अब तक है काले बाल रे
बड़े बड़े काम हो जाते बस सुन कर उनका नाम रे
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
पार्टी के अंदर भी फूट पड़ी रे
अलगाव की आंधी बहती री
बंटते नेताओ को तु एक करा दे
आ जा ओ माता मेरी
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
मनमर्जी का बढता जाए हों राज हों माता
अपने भी हों गए उनके साथ
आज हमे बंटने से बचा ले
आ जा रे माता मेरी
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
लोकपाल से अब तो है पार्टी डरी रे
जाती है पार्टी की साख
पार्टी की गयी हुई साख फिर से ले आओ
आ जा रे माता मेरी
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
इटली की माता तुम मे है दम, तुम्हे पुकारे हम
लोग अन्ना हजारे का समर्थन क्यों कर रहे हैं? मेरा जवाब
यहाँ लिखा एक एक शब्द सच है और मेरी आप बीती हैं
देर शाम को पत्नी व बेटी को राजवाडा पर फ्रूट चाट खिला रहा था तो देखा हर १ मिनट मे अन्ना हजारे जिंदाबाद के नारे लगते हुए लोग निकल रहे थे, पत्नी ने पूँछा "इतने लोग अन्ना के साथ कैसे हों गए हैं"
तभी एक हेड कांस्टेबल स्तर के पुलिस वाले ने एक पपीता उस फ्रूट चाट वाले के ठेले से उठाया और जाने लगा, ठेले वाला बोला साहब ४० रूपये का है, तो पुलिस वाले साहब ने धूर्तता जवाब दिया ४० का ही है न हों गया हिसाब फिर.
ठेले वाले की आँखों मे कातरता थी, पुलिस वाले की आँखों मे निर्लज्जता और मेरी आँखों मे मजबूरी का अपराध बोध और थोड़े से आँसू.
मैने पुलिस वाले साहब की तरफ इशारा करते हुए कहा इस वजह से
अब उन पुलिस वाले साहब ने मुझे देखा, मेरी आँखे भी देखी जिसमे गुस्सा भी था, दर्द भी और आँसू भी.
इस बार उनकी आँखों मे मुझे शर्म दिखी थी. वो वहीँ बैठ कर अपने दो दोस्तों के साथ वो पपीता काट कर खाने लगे और मुझे देख रहे थे, मेरी २ साल की बेटी ने मेरे गालो पर आँसू देखे और अपने रुमाल से उसे पोंछने की कोशिश करने लगी तो वो पुलिस हेड कांस्टेबल फ्रूट चाट वाले से बोले तुझे पैसे देता हूँ.
मेरी आँखे फिर से बह गई, पर इस बार मेरी आँखों मे गर्व था, ठेले वाले की आँखों मे मेरे लिए प्यार तथा सम्मान और पुलिस वाले साहब की आँखों मे अपराधबोध.
ये पहला मौका नहीं है जब मैने किसी पुलिस वाले को उनकी निर्लज्जता के कारण मुह पर धिक्कारा हों लेकिन ये पहला मौका है जब किसी पुलिस वाले को लज्जित होते देखा मैने
कारण जन लोकपाल के समर्थन मे उठी आवाज है, या मेरे आँसू ये तो नहीं जानता लेकिन मुझे जन लोकपाल से एक बल जरूर मिल गया है
देर शाम को पत्नी व बेटी को राजवाडा पर फ्रूट चाट खिला रहा था तो देखा हर १ मिनट मे अन्ना हजारे जिंदाबाद के नारे लगते हुए लोग निकल रहे थे, पत्नी ने पूँछा "इतने लोग अन्ना के साथ कैसे हों गए हैं"
तभी एक हेड कांस्टेबल स्तर के पुलिस वाले ने एक पपीता उस फ्रूट चाट वाले के ठेले से उठाया और जाने लगा, ठेले वाला बोला साहब ४० रूपये का है, तो पुलिस वाले साहब ने धूर्तता जवाब दिया ४० का ही है न हों गया हिसाब फिर.
ठेले वाले की आँखों मे कातरता थी, पुलिस वाले की आँखों मे निर्लज्जता और मेरी आँखों मे मजबूरी का अपराध बोध और थोड़े से आँसू.
मैने पुलिस वाले साहब की तरफ इशारा करते हुए कहा इस वजह से
अब उन पुलिस वाले साहब ने मुझे देखा, मेरी आँखे भी देखी जिसमे गुस्सा भी था, दर्द भी और आँसू भी.
इस बार उनकी आँखों मे मुझे शर्म दिखी थी. वो वहीँ बैठ कर अपने दो दोस्तों के साथ वो पपीता काट कर खाने लगे और मुझे देख रहे थे, मेरी २ साल की बेटी ने मेरे गालो पर आँसू देखे और अपने रुमाल से उसे पोंछने की कोशिश करने लगी तो वो पुलिस हेड कांस्टेबल फ्रूट चाट वाले से बोले तुझे पैसे देता हूँ.
मेरी आँखे फिर से बह गई, पर इस बार मेरी आँखों मे गर्व था, ठेले वाले की आँखों मे मेरे लिए प्यार तथा सम्मान और पुलिस वाले साहब की आँखों मे अपराधबोध.
ये पहला मौका नहीं है जब मैने किसी पुलिस वाले को उनकी निर्लज्जता के कारण मुह पर धिक्कारा हों लेकिन ये पहला मौका है जब किसी पुलिस वाले को लज्जित होते देखा मैने
कारण जन लोकपाल के समर्थन मे उठी आवाज है, या मेरे आँसू ये तो नहीं जानता लेकिन मुझे जन लोकपाल से एक बल जरूर मिल गया है
Tuesday, August 16, 2011
नियामकों तुम इसका फल पाओगे
खुद को नियामक कहने वालों
बताओ तुमने नियमों को कहाँ पाला है
लोकतंत्र की दुहाई दे कर खुद
तुमने लोकतंत्र का जनाजा निकला है
तुम कहते हों
जनता ने चुनकर तुम्हे
संसद तक पहुँचाया था
इस जनता ने तुम्हे
मंत्री संतरी और नेता बनाया था
तुम कहते हों
जो देश के लिए लड़ना है
तो नेता बन कर संसद आओ
फिर संसद आ कर
राजनीती के गलियारों मे
देश की अस्मत लुटवाओ
मत भूलो इस जनता ने ही
नेहरू को नेता
पर गांधी को बापू बनाया था
गोरे अंग्रेजो से लड़ने को
जर्जर बापू की ताकत बनने को
पूरा देश उमड आया था
आज जो तुम अंग्रेजो सा
जुल्म एक
गाँधीवादी अहिंसक संत पर ढाओगे
क्या समझते हों देश की जनता को
कही पीछे तुम पाओगे
तुम कर लो
जो जुल्म तुमको करना है
हर जुल्म का हिसाब
तो तुम सब को यही भरना है
इस सब का फल
तुम जल्द ही पाओगे
जो था अब तक अन्ना उसको
दूसरा बापू तुम ही बनाओगे
और उस बापू की एक आवाज मे
औ सारे नियामकों तुम पूरे देश
की हुकार को पाओगे
Thursday, August 11, 2011
डाल से टूटा एक पत्ता हूँ
जल्द ही सूख कर बिखर जाऊँगा
अब कोई ओस की बूँद
नहीं टिकेगी मेरे किनारों पर
अब नहीं मिलेगी छाँव किसी
थके पथिक को मेरी शरण मे आने पर
अब मै हवाओ के चलने पर
कभी लहरा नहीं पाऊँगा
अब मै हवाओ के गुजरने पर
कोई गीत नहीं गा पाऊँगा
हवाएं तो मूझे अब यहाँ से वहाँ उड़ायेंगी
फिर जल्द ही मेरी नमी भी खो जायेगी
जल्द ही मै रंगीन से बेरंग हों जाऊँगा
मै तो डाल से टूटा एक पत्ता हूँ
जल्द ही सूख कर बिखर जाऊँगा
Wednesday, August 10, 2011
जाने क्या मेरे अंतर से खो गया है
कुछ मेरा,
मेरे अंतर से
कही खो सा गया है
उसे ढूंढ रहा हूँ
यहाँ वहाँ, हर जगह
जाने कहा खो गया है
के मिलता ही नहीं
सवाल ये भी है
के खोया क्या है जिसे मै ढूंढ रहा हूँ
क्या ये है
मेरे अंतर का भोलापन ?
यदि हाँ
तो अगला यक्ष प्रश्न होगा
क्या मै उस भोलेपन को
उसी आत्मीयता से
अंगीकार कर पाऊँगा
और फिर से उसे मै
मेरा ही कह पाऊंगा
जैसे पहले कहा करता था
जो खोया है
क्या वो सत्य है ?
जो की अब मुझे
जरा भी नहीं सुहाता
यदि ये सत्य मिल भी गया
तो क्या उसकी सच्चाई
और सच मे बसी खुदाई
वैसे ही कायम रह पायेगी
जैसे पहले रहा करती थी
या फिर ये उम्मीद है
गर ये उम्मीद ही है
तो मुझे इसे वापस पाना ही होगा
उम्मीद को ढूंढ कर
वापस मेरे अंतर तक लाना ही होगा
सच और मासूमियत
के न होने पर भी जिंदगी
आगे तो बढ़ ही जायेगी
पर यदि उम्मीद ही ना बची
तो जिंदगी तो
मौत से भी बदतर हों जायेगी
Tuesday, August 9, 2011
मै नहीं जानता
आज आँखों से रह रह कर कूछ टपक रहा है
है ये लहूँ या तेरी याद का समन्दर मै नहीं जानता
आज एक उबाल भी बाहर बह जाना चाहता है
है ये मोहब्बत या गम तेरी जुदाई का मै नहीं जानता
आज एक दर्द रह रह कर दिल पर दस्तक देता है
है ये पुराना जख्म या घाव तेरे न होने का मै नहीं जानता
खुद के होने पर रह रह कर एक सवाल उठता है
तेरे जाने के बाद से मै हूँ भी या नहीं हूँ मै नहीं जानता
तू गई लोगो ने कहा, तू बेवफा है तुझे मुझ से प्यार नहीं
मैने कहा, कहो जो चाहो, तुम्हारे कहे को मै नहीं मानता