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Tuesday, April 26, 2011

बहना तेरा मेरा वो बचपन

तेरा मेरा वो बचपन लगता है
जैसे कल की ही तो बात थी

जब तुने जन्म लिया था
और मैंने पिता जी से
तुझे लगभग छीन लिया था
और मेरे बस्ते में पिछले रक्षाबंधन
से सहेज कर रखी हुई राखी
मैंने जिद कर के तेरे नन्हे हाथो से
मेरी कलाई पर बंधवाई थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मै तेरे लिए
घोडा बन जाता था
और पूरे घर में तुझे
पीठ पर बैठा कर घुमाता था
राखी पर तुझे नई फ्रोक
दिलाने को गुल्लक
में महीनो पहले से रूपये बचाता था

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब हम मिल कर
शरारत किया करते थे
और किसी एक के पकडे जाने पर
दुसरे का नाम कभी
ना लिया करते थे

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब शरारतो से तंग
आ कर पिता जी के आदेश पर
मेरा खाना बंद हो जाता था
और मेरे भूखे होने पर
रोना तुझे आता था

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मुझे भूखे रहने की
सजा मिलने पर तू
खुद खाना नहीं खाती थी
और अपने हिस्से का खाना
ला कर अपने हाथो
से मुझे खिलाती थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब हम एक दुसरे से
हर छोटी बात पर लड़ा करते थे
मै तेरी छोटी खींचा करता था
और तू मुझे पीठ पर
मार कर भाग जाया करती थी

लगता है जैसे कल ही की तो वो बात थी

जब मेरे लिखे उन प्रेमपत्रो
को तू छुप कर पढ़ आया करती थी
और फिर सबके सामने होने पर
उन पत्रों के संदर्भ से मुझे चिढाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरे प्रेम पत्र मोहल्ले
की उस लड़की को देते हुए
तू उसे भाभी कह कर चिढाती थी
और पत्र पहुँचाने के बदले
तुम हम दोनों से
ढेरो चोकलेट पाती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरे हर इमतिहान में
तू रात भर मुझे जगाती थी
और अपने हाथो से चाय बना बना कर
रात भर मुझे पिलाती थी
और मेरे अच्छे नम्बर लाने पर
तू खुद की तारीफे करवाती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरी तबियत बिगड जाने पर
तू माँ बन जाया करती थी
और अपने हाथो से
जबरन दवा खिलाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो बात है

जब तू बेटी की तरह मुझ पर
अपना हर हक दिखाया करती थी
और तेरी हर तकलीफ
सबसे पहले मुझे सुनाया करती थी

लगता है जैसे कल की ही तो वो बात थी

जब मेरा हर राज तुझे  पता था
और एक सच्चे दोस्त की तरह
वो तेरे मन की गहराइयों
में ही दबा पड़ा था

अब लगता है जैसे कल की ही तो वो बात है

जब मेरे घर की ये बुलबुल
किसी और के घर में चाह्चाहयेगी
मेरे आंगन की ये खुशबु
किसी और के घर को महकायेगी
डोली में बैठ कर
तू जल्द ही तेरे घर चली जायेगी

तुझसे जो छूटेंगे सब रिश्ते
मेरी भी तो माँ, बेटी , दोस्त और बहन
मुझसे दूर चली जायेगी

भूल ना जाना तू अपने भैया को
तेरी याद हमेशा मुझे आयेगी

तेरा मुझसे खफा होना है कुछ ऐसा ही

तेरा मुझसे खफा होना है कुछ ऐसा ही
जैसे जिस्म से जान का जुदा हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे सांसे तो चलती रहे
लेकिन दिल की धडकनों का रुक जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे मंजिल के सामने आ कर
मंजिल और रास्ते दोनों का खो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे मौसमें बहार में भी
दरख्तों पर से पत्तियों का गिर जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे होली पर भी
रंगों में भीगने से महरूम रह जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे बयाबान में
पानी की आखिरी मश्क का गुम हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे आफताब के होते भी
हर जर्रे से रौशनी का निशाँ तमाम हो जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे माहताब से भी
गर्म रौशनी का कर जिस्म को जलाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे
मजमे के हुजूम में भी तनहा रह जाना

ये कुछ ऐसा ही है जैसे पैदाइश की खुशियों पर
मातम का कहर टूट जाना

ख्वाहिशे कुंदन है बस इतनी ही 
या तो तुझे मना लेना
या कब्र ओढ़ कर खुद ही
कब्र में जिन्दा दफन हो जाना

 
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