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Friday, September 23, 2011

क्यूँ की वो खुदा हो गए हैं

मेरी आँखों के आंसू जाने कहाँ खो गए हैं
लगता है जैसे दिल के सारे जज्बात सो गए हैं

उनकी बेरुखी इतनी बढ़ी, की ये दिल टूट गया
अब साथ तो हैं उनके, पर हम तन्हा हो गए हैं

एक ही मंजिल चुनी थी,कभी हम दोनों ने
मंजिल तो अब भी वही है, पर रास्ते जुदा हो गए हैं

मोहब्बत कर के खुद को भी लुटा दिया हमने
अब वो भी साथ नहीं क्यूँ वो खुदा हो गए हैं

Thursday, September 15, 2011

एकाकी सा एक पेड हूँ

मै तो बस पहाड़ी पर खड़ा
एकाकी सा एक पेड हूँ

नितांत अकेला सा
खुद से बात करता हुआ
तुम्हारी हर याद को
कोटरों मे जमा करता हुआ
राह देखते हुए मन में
तुम्हारे आने की आस  लिए
तुम आओगी मेरे पास
अटल यही एक विश्वाश लिए

तुम्हे ये भी पता है
मेरे पास कुछ नहीं है
मेरा कहने के लिए
तुम्हारे इन्तेजार के सिवा
शाखाओं को बाँहों की तरह
फैला कर खड़ा हूँ,
इनकी चाहत कुछ भी नहीं है
तुम्हरे प्यार के सिवा


और वो
दूर क्षितिज में डूबता सूरज
मुझे पल भर के लिए
लम्बी परछाई से
तुम तक पहुंचा कर
ढेरो खुशिया दे जाता है
और डूबने के बाद फिर
सारी रात सांझ का सुरज 
तुम्हारी याद से रुलाता है


रात होते ही
मै और अकेला हो जाता हूँ
हर रात हवाओं के साथ मिल कर
मै एक नया ही संगीत बनाता हूँ

वो संगीत सिर्फ तुम्हारा है
उस पर मेरा
कोई भी अधिकार नहीं है
तुम ही मेरा जीवन हो
तुम्हारे सिवा
मुझे किसी से भी प्यार नहीं है

मै तो बस पहाड़ी पर खड़ा
एकाकी सा एक पेड हूँ

Tuesday, September 13, 2011

हमें फिर से जमाना अच्छा लगा

वादा था मर जायेंगे तुम्हारी एक ख्वाहिश पर
उन्होंने जान मांगी, और हमें मर जाना अच्छा लगा

नफरत थी हमें जिससे, उन्हें उसी से मोहब्बत थी
हमे फिर अपनी ही नफरत पर,प्यार जताना अच्छा लगा

इन्तेजार किया ,करते रहे, तकलीफे लाख हम सहते रहे
उनको देखा इन्तेजार के बाद,तो तकलीफे उठाना अच्छा लगा

भूल गए थे हम मुस्कुराना, दिल पर लगी चोटों से
देख कर प्यार से मुस्कुराए, हमें फिर से मुस्कुराना अच्छा लगा

जख्म इतने मिले थे जमाने से के नफरत हो गई थी हमे इससे
आप मिले इसी जमाने से, हमें फिर से जमाना अच्छा लगा



 
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