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Sunday, June 5, 2011

आज फिर से खुद को ठगा सा पाता हूँ

आज सुबह जब उठा तो सबसे पहले बाबा और अनुयायियों को खदेड़ने की खबर पढ़ी, और मुह से निकला जलियांवाला कांड करना चाहती है क्या सरकार! सुबह से बड़ा ही व्यथित हूँ और द्रवित भी...

जब दर्द हद से बढ़ गया, आँखों ने आंसुओ को और सहेजने से इनकार कर दिया, भड़ास को दिल ने अपने अंदर रखने असमर्थता दिखा दी और जब सवाल जवाब की व्याकुलता मे तडपने लगे तब उँगलियों ने बहते हुए नमक से शक्ति ले कर दिल की भड़ास को कागज पर उतारने की कोशिश की, जो भी बना वो सामने हैं.

आज फिर से खुद को ठगा सा पाता हूँ
किसे दूं दोष, समझ नहीं पाता हूँ

एक तरफ एक बाबा राजनीती दिखाता है
दूसरी और राजनीतिज्ञ अपनी चाले चलता जाता है

एक पक्ष दुसरे को दोषी बताता है
पर सच क्या है मुझे समझ मे नहीं आता है

बाबा जनता की भावना को भुनाता है
नेता बाबा पर दोष लगा के खुद को दोषमुक्त बताता है

पर जाने क्यों दोनों मे से कोई भी
मेरी ह्रदय वेदना को समझ नहीं पाता है
 
इन दोनों की चक्की मे खुद को मै
बहुत टूटा, बिखरा और कुचला हुआ पाता हूँ

दोनों ही पक्ष मेरे विश्वास को ठगते हैं
आज तो दोनों ही पक्ष ठग नजर आते हैं
 
आज फिर से खुद को ठगा सा पाता  हूँ
किसे दूं दोष, समझ नहीं पाता हूँ

 

 
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