जंग हार जाना, पर अपने हौंसले को मत हारना
दर्द सहते हुए मर जाना, पर खुद को मत मारना
हौंसले को हार देने से
खुद को मार देने से
कुछ हांसिल नहीं हो पायेगा
जो कुछ मेरा तुझ मे है
जो कुछ तेरा मुझे में है
वो अंधियारे मे कहीं खो जायेगा
इस अंधियारे मे
कुछ उजियारा फैलाने को
गैरों के गढ़ में
कुछ अपनों को पाने को
दर्द सह कर भी
तुझे मुस्कुराना ही होगा
जख्मी है पैर तो भी
तुझे कदम बढ़ाना ही होगा
इस मुस्कुराने में
इस कदम बढाने में
दर्द भी मिट जायेगा
जख्म भी भर जायेगा
किला अवसादों का
फिर भी बच गया अगर
तो डर ना कर ,
फ़िकर न कर
वो तेरे हौंसले के तीव्र आवेग से ढह जायेगा
और तुझे हर बार सिर्फ यही गीत सुनाएगा
जंग हार जाना, पर अपने हौंसले को मत हारना
दर्द सहते हुए मर जाना, पर खुद को मत मारना
4 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बालदिवस की शुभकामनाएँ!
honsle nahi haarne chahiye..bahut achchi shikshprad kavita likhi hai.
दर्द सह कर भी
तुझे मुस्कुराना ही होगा
जख्मी है पैर तो भी
तुझे कदम बढ़ाना ही होगा
सुन्दर अभिव्यक्ति.... वाह....
सादर.....
इस मुस्कुराने में
इस कदम बढाने में
दर्द भी मिट जायेगा
जख्म भी भर जायेगा
बहुत सुंदर भावनाएं ....आपकी कविता में उभर आई हैं ...!
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