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Monday, December 19, 2011

मोहब्बत के गीत लिख कर तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ


मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ|
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हूँ|

भगतसिंह का नाम सुन,
लहू उबलने लगता है|
वतन के वास्ते मर,
मिटने का दिल करता है|

ऐसे हालातों मे बार बार
मै वंदे मातरम ही गाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ|
जब वतन के दर्द को देख कर,
खुद को आज भी जिन्दा पाता हूँ|


शर्मिंदा हूँ के मेरे देश ही,
देश को लूटने वाले गद्दार बैठे हैं |
जीत कर चुनाव एक बार,
बन के ५ सालो के लिए सरदार बैठे हैं |

इन गद्दारों को मिटाने की चाहत,
लिए कई रातों तक जग जाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,

तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ |
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हू |


देश को तरक्की पर ले जाने के खोखले इरादों से,
मक्कार नेताओं के चुनाव मे मिलते झूठे वादों से,
अब मेरे सब्र का बाँध टूटने को है,
हाँथ ना उठाने की कसम टूटने को है,

क्रांति का अलख जगाने को,
देश को उन्न्त बनाने को,

आज एक कदम और बढाता हूँ|
तुम्हे भी मेरे साथ बुलाता हूँ|

मोहब्बत के गीत लिख कर,
तब खुद को शर्मिन्दा पाता हूँ |
जब वतन के दर्द को देख कर भी,
खुद को जिन्दा पाता हू |

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