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Wednesday, April 27, 2011

परछाईयां तो हमेशा ही साथ निभाती है

पिछले  कई दिनों से
मुझे मेरी परछाई से
एक अजीब डर लगने लगा था
इस लिए मैंने उजाले में
निकलना ही छोड़ दिया.
पिछले कई दिनों से
सिर्फ अँधेरे में ही बाहर
जाता था,
जहा मेरी परछाई भी
मेरा पीछा ना कर सके
लेकिन कुछ दिनों से
वही डर फिर से महसूस
होने लगा था,
लगता था कोई
हर वक्त अँधेरे में
मेरा पीछा करता है,
एक रोज मैंने हिम्मत कर के
पूँछ ही लिया,
भाई कौन हो तुम और क्यों
अँधेरे में मेरा पीछा करते हो
जवाब मिला
मै तुम्हारी परछाई हूँ
मैंने कहा पर अँधेरे में तो
परछाईयों साथ नहीं आया करती
जवाब मिला
परछाईयों तो हमेशा ही साथ निभाती है
बस वो काली होती है
इस लिए अँधेरे में कभी नजर नहीं आती है

2 comments:

Kailash Sharma said...

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

(कुंदन) said...

कैलाश सर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद आपका

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