पिछले कई दिनों से
मुझे मेरी परछाई से
एक अजीब डर लगने लगा था
इस लिए मैंने उजाले में
निकलना ही छोड़ दिया.
पिछले कई दिनों से
सिर्फ अँधेरे में ही बाहर
जाता था,
जहा मेरी परछाई भी
मेरा पीछा ना कर सके
लेकिन कुछ दिनों से
वही डर फिर से महसूस
होने लगा था,
लगता था कोई
हर वक्त अँधेरे में
मेरा पीछा करता है,
एक रोज मैंने हिम्मत कर के
पूँछ ही लिया,
भाई कौन हो तुम और क्यों
अँधेरे में मेरा पीछा करते हो
जवाब मिला
मै तुम्हारी परछाई हूँ
मैंने कहा पर अँधेरे में तो
परछाईयों साथ नहीं आया करती
जवाब मिला
परछाईयों तो हमेशा ही साथ निभाती है
बस वो काली होती है
इस लिए अँधेरे में कभी नजर नहीं आती है
मुझे मेरी परछाई से
एक अजीब डर लगने लगा था
इस लिए मैंने उजाले में
निकलना ही छोड़ दिया.
पिछले कई दिनों से
सिर्फ अँधेरे में ही बाहर
जाता था,
जहा मेरी परछाई भी
मेरा पीछा ना कर सके
लेकिन कुछ दिनों से
वही डर फिर से महसूस
होने लगा था,
लगता था कोई
हर वक्त अँधेरे में
मेरा पीछा करता है,
एक रोज मैंने हिम्मत कर के
पूँछ ही लिया,
भाई कौन हो तुम और क्यों
अँधेरे में मेरा पीछा करते हो
जवाब मिला
मै तुम्हारी परछाई हूँ
मैंने कहा पर अँधेरे में तो
परछाईयों साथ नहीं आया करती
जवाब मिला
परछाईयों तो हमेशा ही साथ निभाती है
बस वो काली होती है
इस लिए अँधेरे में कभी नजर नहीं आती है
2 comments:
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
कैलाश सर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद आपका
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