वादा था मर जायेंगे तुम्हारी एक ख्वाहिश पर
उन्होंने जान मांगी, और हमें मर जाना अच्छा लगा
नफरत थी हमें जिससे, उन्हें उसी से मोहब्बत थी
हमे फिर अपनी ही नफरत पर,प्यार जताना अच्छा लगा
इन्तेजार किया ,करते रहे, तकलीफे लाख हम सहते रहे
उनको देखा इन्तेजार के बाद,तो तकलीफे उठाना अच्छा लगा
भूल गए थे हम मुस्कुराना, दिल पर लगी चोटों से
देख कर प्यार से मुस्कुराए, हमें फिर से मुस्कुराना अच्छा लगा
जख्म इतने मिले थे जमाने से के नफरत हो गई थी हमे इससे
आप मिले इसी जमाने से, हमें फिर से जमाना अच्छा लगा
उन्होंने जान मांगी, और हमें मर जाना अच्छा लगा
नफरत थी हमें जिससे, उन्हें उसी से मोहब्बत थी
हमे फिर अपनी ही नफरत पर,प्यार जताना अच्छा लगा
इन्तेजार किया ,करते रहे, तकलीफे लाख हम सहते रहे
उनको देखा इन्तेजार के बाद,तो तकलीफे उठाना अच्छा लगा
भूल गए थे हम मुस्कुराना, दिल पर लगी चोटों से
देख कर प्यार से मुस्कुराए, हमें फिर से मुस्कुराना अच्छा लगा
जख्म इतने मिले थे जमाने से के नफरत हो गई थी हमे इससे
आप मिले इसी जमाने से, हमें फिर से जमाना अच्छा लगा
8 comments:
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था
bohot khub
वाह ......अंदाज पसंद आया
भूल गए थे हम मुस्कुराना, दिल पर लगी चोटों से
देख कर प्यार से मुस्कुराए, हमें फिर से मुस्कुराना अच्छा लगा
बेहतरीन गजल ...शुभकामनायें !!!
बहुत खूब!
ye sab acchha laga to fir shikayat kaisi janaab...lutf uthate jaiye.
खूबसूरत अंदाज़
behatrin sir ji awsmmm.....
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