आज फिर
आज फिर, वो ही याद
दिल को झकझोर रही है.
आज फिर, वो हवा मेरे होठो
पर एक पपड़ी जमा रही है
आज फिर, मेरी आँखों से
एक नमकीन नदी बहती जा रही है.
आज फिर, मुझे तेरी याद आ रही है
और आज फिर, तेरी वो याद मुझे रुला रही है
आज फिर, चाँद के पूरा होने पर भी
चाँदनी अधूरी ही आ रही है .
आज फिर, गर्मी की शाम मे
नजर कुहरे से धुंधला रही है .
आज फिर, तेरी वो
अल्हड हंसी याद आ रही है,
और आज फिर,
तेरी वो याद मुझे रुला रही है.
आज फिर, मेरे कदम
घर की और जाने से इंकार करते हैं..
आज फिर, मेरे लब
तुझसे मेरे इश्क का इजहार करते है..
आज फिर, मेरे कंधे
तेरे सर के टिकने का इन्तेजार करते हैं.
क्या करे मगर, हाँ ये सच है
हम अब भी तुझसे बहोत प्यार करते हैं.
और तेरी याद के की तड़प से
मेरी आँखों से कई सैलाब निकलते हैं
और तेरी याद के की तड़प से
मेरी आँखों से कई सैलाब निकलते हैं
4 comments:
ये याद ही है जो इतना रुलाती है ..अच्छी प्रस्तुति
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
व्याकुल भावों की आकुल रचना....
विरह की वेदना से भरी हुई रचना....
जी पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
दिल की बात थी दिल से लिख दी नहीं तो मुझे लिखना नहीं आता मै सिर्फ यही कहता हूँ
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