जल्द ही सूख कर बिखर जाऊँगा
अब कोई ओस की बूँद
नहीं टिकेगी मेरे किनारों पर
अब नहीं मिलेगी छाँव किसी
थके पथिक को मेरी शरण मे आने पर
अब मै हवाओ के चलने पर
कभी लहरा नहीं पाऊँगा
अब मै हवाओ के गुजरने पर
कोई गीत नहीं गा पाऊँगा
हवाएं तो मूझे अब यहाँ से वहाँ उड़ायेंगी
फिर जल्द ही मेरी नमी भी खो जायेगी
जल्द ही मै रंगीन से बेरंग हों जाऊँगा
मै तो डाल से टूटा एक पत्ता हूँ
जल्द ही सूख कर बिखर जाऊँगा
3 comments:
क्षणभंगुर जीवन पर सुंदर मन के भाव..!!
यही है ज़िन्दगी का सच्।
बहुत सुंदर रचना ... आपने शब्दों को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ... शुभकामनाएं
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