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Wednesday, August 10, 2011

जाने क्या मेरे अंतर से खो गया है


कुछ मेरा,
मेरे अंतर से
कही खो सा गया है
उसे ढूंढ रहा हूँ
यहाँ वहाँ, हर जगह
जाने कहा खो गया है
के मिलता ही नहीं

सवाल ये भी है
के खोया क्या है जिसे मै ढूंढ रहा हूँ
क्या ये है
मेरे अंतर का भोलापन ?
यदि हाँ
तो अगला यक्ष प्रश्न होगा

क्या मै उस भोलेपन को
उसी आत्मीयता से
अंगीकार कर पाऊँगा
और फिर से उसे मै
मेरा ही कह पाऊंगा
जैसे पहले कहा करता था

जो खोया है
क्या वो सत्य है ?
जो की अब मुझे
जरा भी नहीं सुहाता
यदि ये सत्य मिल भी गया
तो क्या उसकी सच्चाई
और सच मे बसी खुदाई
वैसे ही कायम रह पायेगी
जैसे पहले रहा करती थी

या फिर ये उम्मीद है
गर ये उम्मीद ही है
तो मुझे इसे वापस पाना ही होगा
उम्मीद को ढूंढ कर
वापस मेरे अंतर तक लाना ही होगा

सच और मासूमियत
के न होने पर भी जिंदगी
आगे तो बढ़ ही जायेगी
पर यदि उम्मीद ही ना बची
तो जिंदगी तो
मौत से भी बदतर हों जायेगी

1 comments:

vandana gupta said...

वाह कुन्दन अब तक की सबसे सुन्दर रचना है ये…………मुझे बहुत पसन्द आयी।

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