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Wednesday, June 1, 2011

खुद से एक सवाल दोहराता हूँ


मैंने जो भी लिखा है उसके लिए आपका बहुत प्यार मिला हमेशा ही .... पर एक सवाल जो दिल मे बार बार आता है उसे ही लिखने की कोशिश करी है .... उन वजहों के साथ जो उस सवाल का कारण हैं.

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कभी कभी कुछ ऐसा भी लिख जाता हूँ
खुद ही पढता हूँ और खुद ही इतराता हूँ

फिर से और पढता हूँ उस लिखे को जब
तो खुद से एक सवाल दोहराता हूँ

क्या ये मेरा ही लिखा हुआ है
क्या सच मे मै कुछ लिख भी पाता हूँ

कभी मै इस भ्रम मे होता हूँ
की मै प्रेम को लिखता हूँ

कभी ये वहम भी मन आता है
की मै व्यंग्य का ज्ञाता हूँ

कभी सोचता हूँ मै
हास्य भी तो अच्छा लिख लेता हूँ

कभी स्वरचित वीर रस की कविता को पढ़ कर 
जय हिंद जय हिंद करने लग जाता हूँ

तथा खुद से एक सवाल दोहराता हूँ
क्या सच मे मै कुछ अच्छा लिख पाता हूँ

कुछ शब्दों को मिलाने को शायरी
और काफियों को मिलाने को गजल बताता हूँ

बिना गद्य,पद्य और छन्दों वाले शब्द समूह को
मै कविता कहते जाता हूँ

खुद से एक सवाल फिर दोहराता हूँ
क्या सच मे मै कुछ लिख पाता हूँ

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह हर रचनाकार स्वयं से सवाल करता है ...उत्तर स्वयं नहीं दे पाता

Unknown said...

किसी के पास उत्तर नहीं होता

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