देखती हो जो तुम मुझको ऐसे
तो किसी की याद दिलाती हो
वो भी देखा करती थी मुझे
यूँ ही किसी और के धोखे मे
पर मै वो नहीं जिसकी
तुम उम्मीद किया करती हो
उसकी नजरे भी कुछ यूँ ही
मेरा पीछा किया करती थी
उसकी धड़कने भी कुछ यूँ ही
मेरे होने से धडका करती थी
उसके कानो की जोड़ी भी कुछ यूँ ही
मेरी आहट को सुना करती थी
उसकी साँसे भी कुछ यूँ ही
मेरी महक को महसूस किया करती थी
कुछ ऐसे ही
जैसे तुम किया करती हो
पर इक दिन वो ये सच जान गई
मै वो नहीं हूँ
मै वो नहीं हूँ
जिसके लिए
सपने वो देखा करती थी
जिसके लिए
उसकी आँखे मेरा पीछा किया करती थी
जिसकी खातिर
उसके दिल की धड़कने बढ़ जाया करती थी
और जिसकी खातिर वो
इक प्रेम तरन्नुम गाया करती थी
मैंने कभी नहीं कहा की
मै कोई और हूँ
पर
अब उसकी नजरो मे
मै बस इक छद्म रुपी था
और उसके दिल मे
मेरे प्रेम का कोई मोल नहीं था
अब तुम मुझे जो यूँ देखती हो
तो मेरे ह्रदय के अँधेरे कोने मे
इक प्रेम जुगनू फिर से टिमटिमाता है
पर ततछण ही मुझे वो याद आती है
और मेरा ह्रदय कहता है
मै वो नहीं
जिसका तुम इन्तेजार करती हो
हाँ मै वो नहीं हूँ
जिससे तुम प्यार करती हो
3 comments:
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
धन्यवाद संजय भाई
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