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Monday, May 9, 2011

कुल की आखरी निशानी और बाबा का चमत्कारी उपाय


मेरे मित्र राजेश को तीन बेटियां पहले ही थी और उसकी मा के एक पोते की चाहत में आज राजेश के साथ मै भी प्रसव कक्ष के बाहर खड़े हो कर नए मेहमान के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था.

तभी नर्स ने बाहर आ कर कहा "बधाई हो घर में लक्ष्मी आई है" खबर सुन कर आदत के अनुसार मेरा हाथ मेरे बटुए तक गया पर राजेश की माँ के चेहरे पर झलकता गुस्सा और राजेश की निराशा देख कर खुद ही वापस लौट आया.

राजेश की माँ यानि सावित्री काकी ने तो वही बहु को कोसना शुरू कर दिया था और राजेश की हालत कुछ ऐसी थी की वो ना कुछ कह सकता है ना सह सकता है, और मै किसी को क्या कहूँ वो समझ नहीं पा रहा था.

ऐसा नहीं है की वो बेटियों से प्यार नहीं करता था, वो तीनो बेटियों पर जान छिडकता था लेकिन उसकी माँ की एक पोते की चाहत और कुल को आगे बढ़ाने की मंशा हर बार एक और संतान के लिए उसे मजबूर कर देती थी. हर बार मा ने उसे इस बात का भरोसा दिलाया था के इस बार उन्होंने सारे उपक्रम किये हैं की पोता ही होगा, २१ ब्राह्मणों को खाना खिलाना दान करना, बहु का हाथ लगवा कर हर हफ्ते भगवान के लिए भोग भिजवाना, पंडित जी को अच्छी दक्षिणा पहुँचना और किसी ही याचक को खाली हाथ नहीं जाने देना.हर तरफ से उन्हें पोते की प्राप्ति के आशीर्वाद सुनने को मिलते थे जिसे सुन कर काकी फूली ना समाती थी लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था और पिछली दोनों बार भी उनके घर में लक्ष्मी ने ही जन्म लिया था.

इस बार तो दान पुन्य के साथ साथ काकी ने हर व्रत रखा था और हर मंदिर पर बहु बेटे से माथा टिकवाया था लेकिन जब चौथी बार भी घर में बेटी ने ही जन्म लिया तो राजेश के सब्र का भी बांध टूट गया और काकी के भी. राजेश ने तो तय कर लिया था की अब कोई और संतान नहीं होगी और चारों बेटियों को ही बेटो की तरह पालेगा और बेटे की चाह में पत्नी को और दर्द नहीं देगा. और काकी तो कुछ सोचने समझने की हालत में ही नहीं थी.

इसी स्थिति में एक महीना बीत गया तभी काकी को किसी ने एक चमत्कारी बाबा का पता बताया जिनका बताया उपाय 
आज तक खाली नहीं गया था. काकी के सूने जीवन में फिर से आशा की एक नई किरण दौड गई और जो काकी कल तक बिस्तर पकड कर बैठी थी वो आज एकदम से स्वस्थ हो गई थी. जिस दिन से उन्हें बाबा के बारे में पता चला था वो राजेश और बहु को ले कर बाबा के पास जाने के उपक्रम में ही लगी हुई थी ताकि बाबा से आशीर्वाद दिलवा कर पुत्र प्राप्ति का वर पा लें और अंतत: वो राजेश और बहु दोनों को ही बाबा तक ले जाने में सफल हो ही गईं.

बाबा के सामने जाने पर काकी तो बाबा के दिव्य आभामंडल से ही अभिभूत हुए जा रही थी, बाबा के ललाट पर चंदन की रोली और काँधे पर केसरिया रंग का रेशमी अंगवस्त्र मिल कर उनके दिव्य आभामंडल को और दिव्य बनाने में अपना पूरा योगदान प्रदान कर रहे थे.

काकी तो बाबा की दिव्यता से ही इस बात के लिए पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी थी की अब तो उनकी पोते को गोद में खिलाने की वर्षों की मंशा जरूर पूरी हो जायेगी.

थोड़ी देर बाद बाबा के दर्शनों का सौभाग्य काकी और परिवार को जब मिला तो काकी ने सामने जाते ही आँखों से मोती बरसाने शुरू कर दिए और बाबा के तार तो जैसे इश्वर के साथ ही जुड़े थे, वो काकी के आंसुओ पर ही पूरी व्यथा बिना कुछ कहे ही समझ गए( ये बात और है की ये बात उन्होंने काकी के आंसुओ के साथ साथ १ महीने की बच्ची और उसकी सूखी हुई माँ को देख कर जाना था)और बोले चिंता मत करो तुम्हारे भाग्य में पोते का सुख लिखा है बस कुछ उपाय करने होंगे.

बाबा के इन शब्दों को सुनने के बाद आने वाले शब्दों को सुनने के लिए काकी की अधीरता एक दम से ही उनकी बढ़ गई ह्रदय गति के साथ दौड लगाने लगी थी, ये कहना मुश्किल था की इस समय काकी की ह्रदय गति तेज भाग रही है या उनकी अधीरता.

बाबा ने अपनी बात को जारी रखते हुए प्रश्न करा आपके यहाँ कुल कितनी बेटियां है?

इस नन्ही को मिला कर कुल ४ बेटियां है, काकी ने बड़ी ही उदास स्थिति मे जवाब दिया.

बाबा फिर राजेश को संबोधित करे हुए बोले बेटा "तुम अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते हो ना"?

राजेश ने मात्र एक हाँ मे सिर्फ हिला दिया क्योंकि इस समय उसे और कुछ कहना सही नहीं लगा.

बाबा फिर काकी को संबोधित करते हुए बोले "अगर आपको पोते का सुख चाहिए तो आपको कुछ उपाय स्वयम भी करने होंगे".

काकी बोली "आप तो बस उपाय बताइए महाराज मै हर व्रत करूंगी, हर मंदिर पर दर्शन करूँगी, जो आप कहेंगे सब करूंगी".

बाबा बोले "माई तुम्हारे यहाँ बेटियों का आगमन इस लिए होता है क्योंकि तुम्हारे घर बेटियों को मिलने वाले प्रेम को देख कर बेटियां खुद ही इश्वर से तुम्हारे यहाँ जन्म लेने के लिए प्रार्थना करती है, अगर तुम एक पोते का सुख चाहती हो तो इस स्थिति मे परिवर्तन ले कर आना होगा. क्या आप ये कर पाओगी?"

"हाँ बाबा हाँ मै ये परिवर्तन ले आऊंगी" काकी ने बड़ी ही अधीरता और उत्साह से मिश्रित स्वर मे कहा.

दूसरा उपाय ये है की आपके बेटे की बेटी और बेटे मे एक वर्ष से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा हो गया तो फिर आपको पोते का सुख नहीं मिल पायेगा.

काकी बिना कुछ सोचे समझे बोली जी महाराज ये भी हो जायेगा.

और तीसरा उपाय पुत्र प्राप्ति यग्य करना होगा, अगर ये यग्य हिमालय की गहराइयों मे किया जाए तो सीधे शिव तक पहुँचता है और भोले बाबा पुत्र प्रप्ति का अमोघ वर देते हैं.

काकी बोली महराज इस यग्य के लिए क्या करना होगा.

महराज बोले चाहे तो आप किसी ब्राह्मण से इस यग्य को हिमालय की तराई मे करने के लिए कह सकती है और यदि आप को खुद ऐसे ब्राह्मण ढूँढने मे समस्या हो तो आप यग्य के खर्च को यहाँ दे सकती हैं और हम व्यवस्था करा देंगे.
काकी अधीरता से बोली आप व्यस्था करा दीजिए महराज जो भी खर्च होगा मै दे दूँगी.

बाबा से राजेश को पुत्र प्राप्ति का अमोघ आशीष दिला कर और यग्य के लिए सारा खर्च दे कर काकी घर आ गई.
घर आ कर बेटे को खूब समझाया ताकि वो एक और संतान के लिए मान जाएँ, बहु को ताने उलहाने और प्रताड़नाओं के द्वारा मजबूर किया और इसका परिणाम ये हुआ की जच्चगी के ३महीने खत्म होते होते बहु के चार प्रसव से बेजान हो चुके शरीर मे एक और जान के पलने की खबर आ ही गई.

इन २ महीनो मे एक बदलाव और आया वो ये काकी ने चारो बच्चियों पर ध्यान देना बंद कर दिया था और फूल के खिले हुए गुलाब के जैसी बच्चियां अब सूख कर सिर्फ कांटा ही रह गईं थी.  राजेश जो इस बारे मे कुछ कहने की कोशिश करता भी तो काकी अपने कुतर्को से उसका मुह बंद कर देती और अपने गुस्से को वो मार के रूप मे बच्चियों पर निकाल देतीं.
राजेश बेचारा ये सोच कर रह जाता की सिर्फ साल भर की ही बात है उसके बाद तो सब पहले जैसा ही हो जायेगा इस लिए वो भी काकी के जुल्म को सहन कर लेता था.

इसी बीच बहु के सूख चुके शरीर से सबसे छोटी बच्ची के जीने का एकमात्र सहारा दूध भी सूख गया और काकी की अनुमति के बिना बच्ची को ऊपर का दूध देना ऐसा कुछ हो गया था जैसे उस बच्ची के कुछ बूँद दूध पीने से सम्पूर्ण विश्व मे दूध की कमी हो जायेगी.

काकी की इस सख्ती का परिणाम ये हुआ की वो नन्ही बच्ची ६ महीने की होते होते सूखे का शिकार हो कर इश्वर को प्यारी हो गई. 

इस हादसे के बाद राजेश के मन मे जीवन के लिए एक अजीब ही निराशा आ गई थी, पर इस सब के बाद भी काकी का व्यव्हार बाकी की तीनो बच्चियों के लिए बिलकुल भी नहीं बदला, वो तीनो बच्चियां अभी भी काकी की उपेक्षा का शिकार बनी हुई थी. 

हाँ बहु के लिए काकी हर अच्छी खाने की चीजे बनाती रही, उसे पौष्टिक खाना खिलाती रही लेकिन जैसे बहु की जीने की इच्छा तो जैसे उस दूध मुही बच्ची के साथ ही मर गई थी और ये सब खाने के बाद भी बहु के शरीर मे कुछ भी बढ़ नहीं रहा था, यदि कुछ बढ़ रहा था तो वो था उदर जो सूखे हुए शरीर मे अलग से ही दिखाई देता था.

इसी बीच कुछ ऐसा हुआ की तीन मे से दो बच्चियों को इलाज की कमी के कारण ज्वर लील गया और सबसे बड़ी बच्ची प्रसव के कुछ दिन पहले ही स्कूल से आते हुए एक मोटर के नीचे आ कर परलोक सिधार गई थी.

वो घर जिसमे आज से साल भर पहले तक चार चार बच्चियों की किलकारी गूंजा करती थी आज वहाँ सिर्फ राजेश और बहु का रुदन ही सुनाई देता था और काकी तो जैसे पोते की उम्मीद मे इन सब दुखो को भूल ही चुकी थी और इस सब के बीच भी काकी की पूजा पाठ चलती ही रहती थी और बाबा के दर्शन भी. हर दर्शन पर उनका विश्वास बाबा के पर और प्रगाढ़ होता जा रहा था.

कल पिछली बच्ची के जन्म को साल भर पूरा होने वाला था इस लिए बाबा के साल भर वाले आदेश का पालन करने के लिए काकी ने चिकित्सको को पैसे से मजबूर करते हुए आज ही शल्य क्रिया से प्रसव करने के लिए राजी कर लिया था, हालाकि उन्हें चिकित्सको ने पहले ही
ही ताकीद कर दी थी की बहु के शरीर मे शल्य क्रिया को सहने की क्षमता नहीं थी और इससे बहु की जान का खतरा हो सकता था लेकिन पोते के मोह ने तो जैसे काकी को अंधा ही कर दिया था.

काकी की बहु ये सब जानती थी, राजेश ने इसका विरोध भी किया था लेकिन बहु राजेश से मात्र इतना ही बोली थी "चार बच्चो को खोने के बाद कोई माँ भला जिन्दा होती भी कंहा है" और फिर सारे तर्क वितर्क पर पूर्ण विराम लग गया था.

काकी ने बाबा का आशीर्वाद पाने के लिए बाबा को भी वहीँ बुला लिया था और बाबा वहा अपने दो चेलो के साथ उसी भव्य और दिव्य आभामंडल को अपने ऊपर अच्छादित किये हुए विराजमान थे.

आज मै फिर राजेश के साथ उसी तरह प्रसव कक्ष के बाहर खड़ा था जीस तरह आज से एक साल पहले खड़ा था लेकिन ना आज मेरी आँखों मे कोई चमक थी ना राजेश की आँखों मे कोई आशा.

काकी की अधीरता पल प्रतिपल बढती ही जा रही थी, और वो बाबा को इश्वर के समकक्ष मान कर उनके सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हुई थी.

तभी डाक्टर एक सफ़ेद कपडे मे लपेटे किसी फूल की तरफ मासूम बच्चे को काकी की तरफ बढ़ाते हुए चेहरे पर एक नकली मगर बिलकुल असली लगने वाला अफ़सोस दिखाते हुए बोले "हम माफ़ी चाहते हैं आपकी बहु को नहीं बचा पाए और उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया है जो पूरी तरह से स्वस्थ है".

काकी ने आँखों मे आंसू भर के बाबा की तरफ कातरता से देखा और बाबा बड़े ही शांत भाव से धूर्तता को अपने शब्दों मे समेटते हुए बोले "मैंने तो पहले ही कहा था की साल भर के पहले दूसरी संतान होना चाहिए और आपके घर दोनों जन्मी संतानों मे तिथि के अनुसार साल भर का समय कल ही पूरा हो चूका है, इस लिए ये तो होना ही था"

अपने भर पूरे खुशहाल परिवार को खोने के बाद पहले ही लगभग विक्षिप्तता की हालत मे पहुँच चूका राजेश ये सुन कर शल्य क्रिया मे काम आने वाली कैंची को उठा कर बाबा पर हमला कर बैठा और पूरी ताकत से कैंचियों के कई वार बाबा के पेट और गर्दन पर करना शुरू कर दिए और सिर्फ यही चीखता रहा "तू मेरे परिवार का खुनी है ढोंगी,तू भी मर जा".

किसी के रोकते रोकते भी बाबा पर वो कई वार कर चूका था और बाबा की इह लीला किसी भी चिकित्सक के कुछ कर पाने के पहले ही समाप्त हो चुकी थी.

अब तक उसे अस्पताल के लोग, बाबा के चेले और मै एक साथ पकड चुके थे लेकिन जाने कहा से राजेश मे एक दम से असीम ताकत का संचार हो चूका था, उसके एक ही झटके मे हम सब कई फिट पीछे जा कर गिर गए और वो "मै भी आ रहा हूँ, मै भी आ रहा हूँ" की रट लगाते हुए सीढियों की तरफ भागा और कुछ ही देर मे अस्पताल की ५ मंजिली इमारत से उसका शरीर एक झटके मे नीचे आ चूका था. चिकित्सको ने उसकी नब्ज की जांच की और उसे मृत घोषित कर दिया और उसकी आत्मा उसके शरीर को छोड़ कर जा चुकी थी शायद अपने परिवार से मिलने.

काकी इस स्थिति मे पूरी तरफ से जड हो चुकी थी, सिर्फ एक साल मे एक कुलदीपक की चाहत ने उनके कुल का नाश कर दिया था और मै आज भी समझ नहीं पा रहा था किसी को क्या कहूँ.

मैंने देखा काकी ने उस नन्ही बच्ची को अपने सीने से लगा रखा था, मैंने बच्ची को उनसे लेने को हाथ बढ़ाये तो काकी ने बच्ची को अपने और पास लाते हुए कहा इसे मै किसी को नहीं दूँगी, ये बच्ची ही तो मेरे कुल की आखरी निशानी है.

15 comments:

nitin said...

bhut khoob kundan bhai.......

Madhurendra said...

Nice one buddy.
dude there is no. of things going wrong in our life for which you can't blame on govt or god.
i wann say 1 thing that "ki kas kaki ko v unke parents ne ladki samjh ke mar diya hota.aaj conditions mai thoda changing hai bt wo sirf cities mai villages mai aaj v log wahi karte hai jo aapne likha hai. kass aapki ye blog unlogo tak pahunche jinko aap aur ham pahuchana chate hai to aap winner honge is century or iss decade ke
thanks :D

vandana gupta said...

रौंगटे खडे कर दिये ……………ना जाने कब हम इन अंधविश्वासों से ऊपर उठेंगे……………इससे ज्यादा कहने की स्थिति मे नही हूं।

Unknown said...

क्या लिख दिया तुमने .......? जीवन के मोह मैं कई जीवनों की बलि. आखिर ऐसा क्यों होता है? ....... आज ही एक कविता लिखी है..... राजेश को सपरिवार मेरी श्रृद्धांजली...... और काकी से ये सवाल ..........

एक सवाल जिन्दगी से
तू इसके होने से पहले क्या थी?
जब ये न था, तू कहाँ थी.
तू इसके, साथ है
या इसके बाद है?
पता नहीं,
अभी तो ये दिखता है
पहले दिखता था या नहीं
कब ये यहाँ आएगा
कब भोग कर जाएगा,
फिर भी मेरा सवाल
वहीं का वही रह जाएगा
तू इसके होने से पहले क्या थी?

Anonymous said...

कुछ कहने की हालत में नहीं हु

anjule shyam said...

kahani waqi sochne ko majbur kar dene vali hai..
pote ki chahat mein pura parivar tabah huva....
pata nahi is chahat ne hi kitne ghar ujade hain..

Kailash Sharma said...

बहुत मार्मिक...शर्म आती है कि एक औरत ही एक लडकी की दुश्मन होती है..कब मिलेगा लडकी को उसका उचित स्थान ?

Udan Tashtari said...

ओह!! मार्मिक.

(कुंदन) said...

जी आप सभी का धन्यवाद पसंद करने के लिए

आप सभी से अनुरोध है की मेरी इस कहानी को अगर आप आपके ब्लॉग पर थोड़ी सी जगह दे दें तो शायद ये और ज्यादा लोगो तक पहुँच पायेगी और अगर एक व्यक्ति भी खुद को बदल सका तो मै ये मानूंगा की मेरा कहानी लिखना सफल हो गया

मैंने ये कहानी एक सच्ची स्थिति को देख कर ही लिखी है, उस सच्ची बात मे पूरी स्थिति इस कहानी की तरह नहीं है पर जिन्हें देख कर लिखी थी उनके परिवार मे आज ५ बच्चियां है और उन बच्चियों पर अत्याचार भी होते है..... उन ५ बच्चियों मे सबसे छोटी २ बच्चियों के बीच एक साल का अंतर भी नहीं है और ये कहानी कुछ दिन पहले जब मेरे दिमाग मे जन्मी थी तब सबसे छोटी बच्ची का जन्म हुआ भी नहीं था

Ajay Menghani said...

badiya he.. ap bhai... sach me maja aa gya..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

अंतस तक झकझोर कर रख दिया आपकी मार्मिक कहानी ने ...
आपने जो लिखा है वह आज भी घटित हो रहा है | हम कब तक अपने बड़ों की दकियानूसी सोच को सम्मान देने के नाम पर इस तरह बच्चियों और बहुओं पर अत्याचार करते रहेंगे या मूक समर्थन देते रहेंगे ? अब समय आ चुका है, आखिर कब तक हम सोते रहेंगे ?
पहले हम सब भलीभाँति समझ लें फिर दूसरों को समझायें की लडकियाँ किसी भी मायने में लड़कों से पीछे नहीं हैं | हम लड़का-लड़की का भेद समाप्त करते हुए , एक निगाह से दोनों को देखें | दोनों को बराबर प्यार और आगे बढ़ने का समान अवसर दें|

(कुंदन) said...

संकट Thanks

सुरेन्द्र सिह (झंझट)जी

विचारों मे साथ देने के लिए धन्यवाद.....बस कोशिश की थी स्थिति और भावनाओं को शब्दों मे ढालने की और उसे कहानी का नाम भर दे दिया है लेकिन शायद आज भी हर चौथे घर मे लड़के पाने के नाम पर कही घर की बहु पर अत्याचार होते हैं और कही ढोंगी साधुओं की उपासना

मैंने बस इन्ही मुद्दों पर चोट करने की कोशिश की थी.

मै नहीं जानता ये सार्थक था या नहीं लेकिन आप सब का सहयोग मिलेगा तो कोशिश करता रहूँगा कुछ सार्थक लिखने की सदा ही

Geeta said...

ufff, kya kahu sach mei kuch samjh nahi paa rahi hu, sach mei ak ladke ki chaht mei kaki ka pura kul hi khatam ho gaya

Unknown said...

अत्यंत मार्मिक ..सामाजिक कुप्रथाओं और गलत सोच पर प्रहार करता प्रकरण ..भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार ......!!

Unknown said...

NO DOUBT IT IS A REALITY IN THIS COUNTRY. IN EVERY GAON SO MANY FAMILIES ARE SUFFER WITH THIS CRUELTY AND CURSE. EVEN MY BUAJI HAVE FIVE DAUGHTERS WITH THE ASHIRWAD OF DERAWALE BABAJI, SIRSA LAST ONE WAS BORN AT THE AGE AFTER 52 OF HIR. WHEN FUFAJI WAS DIED, THE LAST ONE WAS OF 11-12 YRS OLD. HOWEVER I WAS BECOME NASTIK IN MY CHILDHOOD BUT NO ONE CONVINCED TO UNDER STAND THE REALITY AND CONTINUE TO LOSS THEIR VALUABLES AND LIFE.

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