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Friday, February 23, 2018

तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा

तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा,
लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है

जब हम पहली बार मिले थे
तब घर के पीछे वाले बंजर टीले की
रेतीली जमीनी पर
पहली और आखरी बार
ढेर सारे कंवल खिले थे |

तुम्हे तो ये भी याद नहीं होगा

की जब तुमने मुझको
और मैंने तुमको
पहली बार गले से लगाया था
तब मुंडेर पर बेठे बेसुरे कव्वे ने भी
बहुत मीठे सुर में
पहली और आखरी बार
प्रेम का गीत गाया था |

और तुम्हे ये ज्ञात भी नही होगा

की जब तुम्हारे होठो ने
मेरे होठो को छुआ था
तब मेरे अपने होठो के बीच
पहली और आखरी बार
एक अद्भुत द्वंद हुआ था |

उस दिन से आज तक
मेरे होठ
एक दुसरे को छूने से
इनकार कर रहे हैं |
वजह सिर्फ इतनी है
की वो आज भी
तुम्हारे होठो का
इन्तेजार कर रहे हैं |

वजह सिर्फ इतनी है
की वो आज भी
तुम्हारे होठो का
इन्तेजार कर रहे हैं

अगर आप इसे सुनना चाहते हैं तो यहाँ से सुन सकते हैं |


4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-02-2017) को "सुबह का अखबार" (चर्चा अंक-2891) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown said...

behtreen line. publish your line in book form, visit us today: http://www.bookbazooka.com/

Rohitas Ghorela said...

इंतजार इंतज़ार और सिर्फ इंतजार

Rajeev Bharol said...

बहुत सुंदर

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