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Sunday, January 18, 2015

पिता

पिता
खुद धुप में खडे हो,
संतान के लिए छाँव बनाते हैं |
पिता
सन्तान की खुशियों हेतु
खुद की खुशियाँ भूल जाते हैं |
पिता
खुद की थकान को नकार
बच्चे को कंधे पर घुमाते हैं |
पिता
संतान की जीत के लिए
ख़ुशी से खुद को हार जाते हैं |
पिता
स्वयं भूखे रह कर भी
बच्चे को पकवान खिलाते हैं
पिता
बच्चे की नई कमीज हेतु
पुराने स्वेटर में एक और सर्दी बिताते हैं|
पिता
बच्चे की जरूरी, गैर जरूरी जरूरतों हेतु
तडके निकलते और देर से घर आते हैं |

ऐसे जाने कितने ही त्याग है
जो बिना बोले ही पिता करते जाते हैं |
और इन त्यागों को हम तब
समझते हैं जब पिता को खो देते हैं
या खुद पिता बन जाते हैं |


So, just go and express your care, love and respect for you father while you have him with you.

I Love you Babu.. and I miss you a lot

2 comments:

प्रतुल वशिष्ठ said...

कुंदन जी, आपकी सभी रचनाएँ पढ़ने का मन करता है। वास्तव में आप कमाल का लिखते हैं। भाव के स्तर आप अत्यंत संवेदनशील हैं। आपकी संवेदनशीलता से छोटा सा भी किसी का त्याग नहीं छिप सकता। सोच रहा था - आज रविवार है अपने ब्लोग पर कुछ रचना दूँगा और कुछ विचारों को लिपिबद्ध करूँगा लेकिन आदरणीय 'मयंक' के चर्चा मंच पर जाकर पहले धन्यवाद दे आऊँ 'वहाँ आपकी रचना के मुखड़े के आकर्षण से खिंचकर आपके चक्कर लगाने पर बाध्य हो गया हूँ ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

'पिता' कविता को बार-बार पढ़कर भी मन नहीं भरता ।

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