मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया
आजादी तो मिल गई अंग्रेजों से
पर अपनों से आजादी नहीं ले पाया
तुमने अपनी जान लुटाई
आजादी का अलख लगा कर
पूरे देश को जगाने को
यहाँ नेता ही,
जनता की आवाजे दबा रहे हैं
अपनी कुर्सियों को बचाने को
इन नेताओं से
मै अब तक आजाद अभिव्यक्ति का
अधिकार नहीं ले पाया
हे अमर शहीद मुझे माफ करना
मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया
एक तुम थे
जो अपनी खुशियों को छोड़
चले आये थे
अपने घर की
हर सम्पति से मुह मोड
चल आये थे
एक आज के नेता हैं
जो देश की सम्पति पर
अपना हक जमाते हैं
कोई उनके भ्रष्टाचार
के विरुद्ध आवाज उठा दे
तो उसे धमकाते हैं
इन भ्रष्ट नेताओं को
मै आज तक कभी भी
जेल की सलाखे नहीं दे पाया
हे अमर शहीद मुझे माफ करना
मै तेरे सपनो भारत नहीं दे पाया
आजादी तो मिल गई अंग्रेजों से
पर अपनों से आजादी नहीं ले पाया
3 comments:
सटीक ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आजादी तो मिल गई अंग्रेजों से
पर अपनों से आजादी नहीं ले पाया
.............अच्छी प्रस्तुति
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