तलाश मोहब्बत की, तमाम उम्र करता रहा
मै हर रोज ,थोडा थोडा कर के मरता रहा
मेरे नसीब मे मोहब्बत कभी थी ही नहीं
मै नाहक ही उसका इन्तेजार करता रहा
उसने आह भर कर दी, मेरे एक जख्म पर
मेरा दिल उसके प्यार का दम भरता रहा
उससे मिली मुझे नफरत ही हर कदम
उसकी राहों में मै बस प्यार धरता रहा
मेरी दुनिया को कभी वो अपना नहीं पाई
उसकी दुनिया मे मै बस खुशिया भरता रहा
कई बार जोड़ा चिप्कियों से मेरे दिल को
सनम हर बार इसे जार जार करता रहा
जमाने की नफरतों से मुझे वो जलाती रही
"कुंदन" खुद को जला कर खाक करता रहा
2 comments:
तलाश मोहब्बत की, तमाम उम्र करता रहा
मै हर रोज ,थोडा थोडा कर के मरता रहा
क्या बात कही है कुन्दन्……………यही है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा…………सिसका सिसका के मारना।
मार्मिक .....और क्या कहूं?
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