तुम्हे पता है क्या
आधी रात को इस छत से
इस तरह
तुम्हारे हाथो मे हाथ लेकर
चाँद को यहाँ से इस तरह
शायद आज
आखरी बार देख रहा हूँ
चाँद कल भी होगा
छत भी कही नहीं जायेगी
गाहे बगाहे हम दोनों भी
इस छत पर आ जायेंगे
पर आधी रात को
हाथो मे हाथ लेकर
इस छत पर खड़े हों कर
हम चाँद को शायद
फिर कभी नहीं देख पायेंगे
क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे
तुम्हे पता है क्या
मुझसे सिर्फ
ये छत ही नहीं छूटेगी
कई यादे भी यहीं छूट जाएँगी
कई तस्वीरें जो सजी है
जहन की दीवारों मे
वो तस्वीरें भी टूट जाएँगी
अब सर्दियों की दोपहरी मे
छत पर बिखरी वो धुप
मेरी नहीं होगी
गर्मियों की उन शामों मे
कोने मे मेरी वो मच्छरदानी
नहीं टंगी होगी
अब बारिश की रातों मे
हम दोनों इस छत पर
शायद कभी भीग नहीं पायेंगे
क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे
वो छत पर ही
फागुन की मस्ती मे
हम दोनों का ही फागुन हों जाना
तुमको रंगने से पहले ही
तुम्हारा मेरे प्रेम रंग मे खो जाना
छत पर कपड़े सुखा कर
उन कपड़ो की ठंडी छाँव मे
आकर मेरी बाहों मे
सबसे छुप कर चुपचाप
थोड़ी देर के लिए सो जाना
अब इस छत पर हम
ये सब नहीं दोहरा पायेंगे
क्योंकि बहुत जल्द हम
इस छत से दूर चले जायेंगे
2 comments:
dil ki gahraaiyon se nikle bol lagte hain.bahut achchi kavita.
दिल की गहराइयो से निकली एक बहुत ही सुन्दर कविता दिल को छू गयी।
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