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Sunday, June 26, 2011

यादो के आशियाने नहीं मिटते

वो नमकीन बूँदे,
जो पलकों से रुखसार पर
भीगी रुत की दाह से आ जाती है
वो दाह
जाने कब तक

जाने कब तक
यूँ ही जलाती रहेगी
आँखों से मेघ बरसते रहेंगे
कुछ बूंदे कही से ढलकती रहेंगी
वो पुरानी छत रिसती रहेगी
जिसमे से यादो की बूंदे
टिप टिप कर के टपकती रहेंगी

और
जमाने की ठोकरे,
कड़वाहटों का बवंडर
जुदाई की सच्चाई भी
यादो की नीव को
नही हिला पाएगी.

वैसे भी,
वक्त के सैलाब मे
यादो के आशियानें,
कहाँ मिटा करते हैं?

5 comments:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दर्द भरी दास्ताँ ... अच्छी प्रस्तुति

(कुंदन) said...

धन्यवाद पसंद करने के लिए

udaya veer singh said...

रचनाकार की रचना , रचनात्मक व रुचिकर है , बधाई जी

Kailash Sharma said...

वैसे भी,
वक्त के सैलाब मे
यादो के आशियानें,
कहाँ मिटा करते हैं?

....बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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