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Thursday, June 23, 2011

सरकारी दफ्तर, दान-दक्षिणा और हमारी आजादी

सरकारी दफ्तर के एक बाबू से हम बोल

बाबु जी हमारी फाइल आगे कब बढाओगे
वो बाबु जी बोले, जब तुम थोडा प्रसाद चढाओगे

हम बोले प्रसाद तो इश्वर को चढाते हैं
आप तो मनुष्यों की ही श्रेणी मे आते हैं

वो बोले आप का कहना तो सच्चा है
लेकिन प्रसाद हमें भी मिल जाए तो अच्छा है

हम बोले हम अब जब मंदिर जायेंगे
तो थोडा प्रसाद आपके लिए भी ले आयेंगे

वो बोले लगते तो आप ग्यानी है
लेकिन सरकारी दफ्तर के काम से आप अज्ञानी है

यहाँ प्रसाद और दक्षिणा का मतलब
हम सब को मिलने वाली रिश्वत से होता है

हम बोले तो

क्या आप, आप के काम की भी रिश्वत खायेंगे
वो बोले आप रिश्वत दोगे तभी फ़ाइल आगे बढायेंगे

गर नहीं दी रिश्वत तो आप सिर्फ धक्के खाओगे
और आप के काम को कभी पूरा नहीं कार पाओगे

हम लाचारी से बोले यहाँ तो कैमरे लगे हुए हैं
क्या आप उन कैमरों के सामने रिश्वत ले पाओगे

वो बोले ये दक्षिणा तो आप
फ़ाइल के बीच मे रख कर ही लायेंगे

हम बोले उन पैसो को आप इन कैमरों के सामने
फ़ाइल से अपनी जेबो तक कैसे पहुंचायेंगे

वो साहब बोले, ये जो इतने चौड़े खम्बे है
ये सब और किस दिन काम आयेंगे

फिर वो घुड़ककर बोले, अब आप हमारा और वक्त ना खाईये
जाइये जा कर, इस फ़ाइल मे दक्षिणा रख कर लाइये

ये सब सुन कर, हम खुद को असाहय पा रहे थे
और बापू तस्वीर बने, दीवार पर चिपके सिर्फ मुस्कुरा रहे थे

हमारी इमानदारी और मेहनत को नोटों की शक्ल मे बदल कर
हमारी ईमानदार जेब से, एक बैमान की जेब मे जा रहे थे

और हम हमारी इस हालात पर आंसू बहा रहे थे
क्या हम सच मे आजाद है, यही प्रश्न दोहरा रहे थे

क्या हम सच मे आजाद्द है, यही प्रश्न दोहरा रहे थे

5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिना दान दक्षिणा के कोई काम नहीं होता ..सटीक व्यंग

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक और सटीक व्यंग..

(कुंदन) said...

जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

vandana gupta said...

आज के हालात का सटीक चित्रण है।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

वाह कुंदन भाई वाह......

बहुत सटीक रचना लिखी है ....लोकतंत्र में भ्रष्टतंत्र के गहरे पैठ की

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