वो कहते हैं हमारी सादगी को देख कर, के हम कभी हँसते नही
सच तो ये है की हम हंस के, किसी की मोहब्बत मे फंसते नही
हम तो सदा महकने वाली, हंसी की एक पूरी फुलवारी हैं दोस्तो
कोने मे सजा कर रखने वाले, नकली महक के फूलो के गुलदस्ते नही.
पूंछना उनसे हमारे ठहाको के किस्से कभी, जो साथ बैठते हैं हमारे
वो बताएँगे तुम्हे, हम हँसते हैं दिल खोल कर के या हँसते नहीं
हम तो वो हैं, जो हंसा हंसा कर रुला देते हैं पत्थरों को भी
और पत्थर हम से पूंछते हैं, क्या हंसा हंसा कर कभी तुम थकते नहीं
कहें क्या हम फूलों से, पत्थरों से और अनजानों से
ये नेमत है, जो मिली है हमें, मंदिर की घंटी से मस्जिद की अजानो से.
3 comments:
वाह वाह्…………खूबसूरत अन्दाज़्।
कुंदन भाई
नमस्कार!
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
कुंदन भाई,
कैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
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