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Monday, May 2, 2011

हां मैंने देखा है जिस्म को उम्र से आगे निकलते हुए

लोग कहते हैं
उम्र जिस्म से आगे नहीं जाती
क्या कभी देखा है
ऐसा होते हुए
 
पर मै कहता हूँ


हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलते हुए
उस जिस्म को
धूं धूं कर के
जलते हुए


हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलते हुए

हां मैंने देखा है
उम की सुबह को
जिस्म की शाम आने
के पहले ही रात में
ढलते हुए


हां मैंने देखा है
उम्र और जिस्म को
एक दुसरे की जगह
बदलते हुए


हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलने पर
बिलखते हुए

हां मैंने देखा है
जिस्म को उम्र से पहले ही
मौत के दरवाजे पर
टहलते हुए 

हां मैंने देखा है 
जिस्म को धूं धूं कर के
जलते हुए
और
जिस्म को उम्र से आगे
निकलते हुए

 
********************************

इस नज्म के लिए मै वंदना जी का धन्यवाद करूँगा क्योंकि ये नज्म, मैंने उनकी एक कविता पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी को ही विस्तृत करने पर पाई है

2 comments:

Kailash Sharma said...

हां मैंने देखा है
उम की सुबह को
जिस्म की शाम आने
के पहले ही रात में
ढलते हुए

....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी...बहुत सुन्दर

(कुंदन) said...

धन्यवाद सर

आपका प्रोत्साहन मुझे हमेशा और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेगा

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