लोग कहते हैं
उम्र जिस्म से आगे नहीं जाती
क्या कभी देखा है
ऐसा होते हुए
पर मै कहता हूँ
हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलते हुए
उस जिस्म को
धूं धूं कर के
जलते हुए
हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलते हुए
हां मैंने देखा है
उम की सुबह को
जिस्म की शाम आने
के पहले ही रात में
ढलते हुए
हां मैंने देखा है
उम्र और जिस्म को
एक दुसरे की जगह
बदलते हुए
हां मैंने देखा है
उम्र को जिस्म से आगे
निकलने पर
बिलखते हुए
हां मैंने देखा है
जिस्म को उम्र से पहले ही
मौत के दरवाजे पर
टहलते हुए
हां मैंने देखा है
जिस्म को धूं धूं कर के
जलते हुए
और
जिस्म को उम्र से आगे
निकलते हुए
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इस नज्म के लिए मै वंदना जी का धन्यवाद करूँगा क्योंकि ये नज्म, मैंने उनकी एक कविता पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी को ही विस्तृत करने पर पाई है
2 comments:
हां मैंने देखा है
उम की सुबह को
जिस्म की शाम आने
के पहले ही रात में
ढलते हुए
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी...बहुत सुन्दर
धन्यवाद सर
आपका प्रोत्साहन मुझे हमेशा और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेगा
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