मै नहीं जानता की कोई अपनी डाल से टूट कर कही और जड़े तलाश बनाने की कोशिश कर रहा है की नहीं लेकिन अगर आप जड़ो से टूट कर अलग हुई एक डाल है तो शायद आप इसे समझ सकें
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आज दिवाली की रात है
आज फिर मै रो चुका हूँ
हर एक रिश्ते से और थोडा,
दूर अब मै हो चुका हूँ
अब दीवाली पर कभी भी
पिता का आशीष नहीं ले पाऊँगा
छोटे भाई को अब कभी भी
उपहार और कपड़े नहीं दे पाऊँगा
अब घर के चौक पर
पटाखे और फुलझड़ी जला न पाऊँगा
अब माँ के हाथों की
गुझिया और पपड़ी खा ना पाऊँगा
आज दिवाली की रात है
आज जाने क्या क्या मै खो चुका हूँ
आज दिवाली की रात है
और आज फिर मै रो चुका हूँ
अब दिवाली पर मुझे
कोई नए कपड़े दिलाता भी नहीं
अब मिठाई मुझ को कोई
अपने हाथो से खिलाता भी नहीं
अब पटाखों से जो जला तो
कोई मुझे मल्हम लगाता भी नहीं
आज फिर हाथ जल गया
दर्द में बिलख कर फिर
आज भूखा ही मै सो चुका हूँ
आज दिवाली की रात है
और आज फिर मै रो चुका हूँ
5 comments:
बहुत सुन्दर!
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कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।
bahut hi sundar .....apne badon ka ashish to hamesa apne sath rahta hai sir .......duriya mayne nahi rakhti ......bahut hi umda ..sabdon se pare.....
आज दिवाली की रात---- अपनों को खोते चले जाते हैं,हर दीवाली पर,आंखो की नमी गहरी होती जाती है.भावुक गीत.
भावपूर्ण!
पर मुस्कुराते रहिये|
उमंग जगाते रहिये!
शुभकामनाएं!
अच्छी कविता
सादर...
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