बारिश की बूंदे
मेरे तन को भिगोती है
तुम्हारे प्रेम की बूंदे
मेरे मन को भिगोती है
बारिश का आना
सूर्य से मिले
ताप को मिटाता है
तुम्हारा आना
विरह से मिलते
दाह को मिटाता है
बारिश होने से
जैसे चातक की
वर्ष भर की
प्यास बुझ जाती है
वैस ही तुम्हारे प्यार से
मेरी कई जन्मो की
तलाश मिट जाती है
जैसे बारिश की बूंदों के
साथ से पौधों पर
नई कलियों का अंकुरण होता है
वृक्षों पर नए पत्ते आते हैं
वैसे ही मेरे जीवन मे भी
आशा की नई कोपलें फूटने लगती है
अब मै कैसे ना कहूँ की
बारिश और तुममे कोई अंतर नहीं है
4 comments:
bahut bahut khoobsurat bhaavon vali kavita.
अच्छी तुलना की है ...खूबसूरत रचना
वाह क्या खूब भावो को संजोया है।
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
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