माशूक ने जाते हुए कहा था हमसे
ना लगाना लबों से जालिम शराब को
जल्द ही आएगी वो लौट कर मेरे पास
तब जितना चाहे पी लूँगा मै हुस्नोशबाब को
उस पल से मैंने सुराही को लबो से लगाया नहीं
मेरी बेरुखी से नाराज, साकी ने भी बुलाया नहीं
इन्तेजार करता हूँ हर रोज यार का अब तो मै
पर न खुद आई, और कोई पैगाम भी भिजवाया नहीं
सब कहते रहे मुझसे मेरा, माशूक बेवफा गया है
मेरे प्यार का हर कतरा उसके दिल से फ़ना हो गया है
उसकी आँखों से न पी कर, सुराही को लगाया था मुह से
मुमकिन है मेरा दिलबर, इस बात पर मुझसे खफा हो गया है
कोई बता दे उनको, लबो पर लगी वो सुराही खाली थी
मेरी आँखे उनके एक दीदार की खातिर बस सवाली थी
कैसे बताऊँ मेरी प्यास की तडप, भूल गई खुद का वादा भी
वादे के मुताबिक़ वो ही तो मुझे, अपनी आँखों से पिलाने वाली थी
1 comments:
अच्छी रचना ,बधाई
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